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खुदीराम बोस - Khudiram Bosh - Biography and Short Introduction

खुदीराम बोस

"क्या गुलामी से बड़ी और भद्दी
कोई दूसरी बीमारी हो सकती है"

★ खुदीराम बोस का जन्म 03 दिसंबर, 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले एक छोटे से गाँव हबीबपुर में हुआ था।

★ उन्होंने हैमिल्टन हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त की।

★ खुदीराम भारत के सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। वर्ष 1900 के दशक की शुरुआत में, अरबिंदो घोष और बहन निवेदिता के सार्वजनिक भाषणों ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

★ वर्ष 1905 में, बंगाल विभाजन के दौरान, वे स्वतंत्रता आंदोलन में एक सक्रिय स्वयंसेवक बन गए और ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ़ पर्चे बाँटने के आरोप में पहली बार गिरफ़्तार किया गया।

★ वर्ष 1908 में खुदीराम अनुशीलन समिति से जुड़ गए, जिसने अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालने के लिए हिंसक तरीकों का सहारा लिया था।

★ डगलस एच किंग्सफ़ोर्ड उस समय कलकत्ता के मुख्य प्रदेश न्यायाधीश (प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट) थे।

★ क्रांतिकारियों ने किंग्सफ़ोर्ड की हत्या के लक्ष्य को अंजाम देने के लिए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार चाकी को नियुक्त करने का फैसला लिया।

★ 30 अप्रैल,1908 को उन्होंने किंग्सफ़ोर्ड जब क्लब से निकल रहे थे तब घोड़ा गाड़ी पर हमला किया और खुदीराम ने उस पर बम फेंका। बाद में पता चला कि घोड़ा गाड़ी में प्रिंगल कैनेडी नामक बैरिस्टर की पत्नी और बेटी को लेकर जा रही थी।

★ मुजफ्फरपुर (बिहार) के मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या के प्रयास में फाँसी की सजा।

★ खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार चाकी को पकड़ने के लिए कलकत्ता पुलिस को बुलाया गया।

★ प्रफुल्ल कुमार चाकी ने गिरफ्तार होने से ठीक पहले आत्महत्या कर ली थी। अंत में, कई मुक़दमों और सुनवाई के बाद खुदीराम को मौत की सज़ा सुनाई गई। खुदीराम मात्र 18 वर्ष की आयु में 11 अगस्त, 1908 को फाँसी दे दी गई, जिससे वह भारत के उन सबसे युवा क्रांतिकारियों में से एक बन गए जिन्हें को अंग्रेजों ने फाँसी दी थी।

★ अमृत बाज़ार पत्रिका (बंगाली) और द एम्पायर (ब्रिटिश) जैसे समाचार पत्रों ने लिखा कि इस क्रांतिकारी लड़के का मिज़ाज ऐसा था कि वह फाँसी के तख्ते पर चढ़ते समय भी मुस्कुरा रहा था।

पिंगली वेंकैया - Pingali Venkaiya - Short Introduction

पिंगली वेंकैया

● पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त, 1876 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में हुआ था।

● पिंगली वेंकैया ने अफ्रीका में एंग्लो बोअर युद्ध के दौरान दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सेना में एक सैनिक के रूप में कार्य किया। गाँधीवादी सिद्धांतों में दृढ़ विश्वास रखने वाले और कट्टर राष्ट्रवादी वेंकैया की मुलाकात युद्ध के दौरान महात्मा से हुई।

● वह विजयवाड़ा में एक बार फिर महात्मा से मिले और उन्हें झंडे के विभिन्न डिजाइनों के साथ अपना प्रकाशन दिखाया। राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, गाँधीजी ने 1921 में राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक में वेंकैया को एक नया ध्वज डिजाइन करने के लिए कहा।

● प्रारंभ में, वेंकैया केसरिया और हरे रंग के साथ आए, लेकिन बाद में यह केंद्र में चरखे और तीसरे रंग-सफेद के साथ विकसित हुआ। इस झंडे को आधिकारिक तौर पर 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अपनाया गया था।

● पिंगली वेंकैया एक स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय तिरंगे के डिजाइनर थे जो आगे चलकर स्वतंत्र और स्वतंत्र भारत की भावना का पर्याय बन गए। आज हम जो राष्ट्रीय ध्वज देखते हैं वह उन्हीं के डिज़ाइन पर आधारित था। स्वतंत्रता संग्राम में उनके जीवन और योगदान को बमुश्किल प्रलेखित किया गया है।

● वर्ष 2009 में उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया गया और 2014 में आंध्र प्रदेश सरकार ने भारत रत्न के लिए उनके नाम की सिफारिश की।

● वर्ष 2015 में आकाशवाणी विजयवाड़ा का नाम बदलकर वेंकैया के नाम पर रखा और इसके परिसर में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया।

छत्रपति शाहू महाराज Chhatrapati-Shahu-mahraj : Introduction and Biography

छत्रपति शाहू महाराज : Introduction and Biography

राजर्षि शाहू के नाम से प्रसिद्ध छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून, 1874 को कोल्हापुर जिले के कागल गाँव में हुआ।

इनके पिता जयसिंहराव और माता राधाबाई थे।

शाहूजी महाराज कोल्हापुर रियासत के पहले महाराजा थे।

समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सत्य शोधक समाज आंदोलन के योगदान से प्रभावित, शाहू महाराज एक आदर्श नेता और सक्षम शासक थे, जो अपने शासन के दौरान कई प्रगतिशील और पथ-प्रदर्शक गतिविधियों से जुड़े थे।

उन्होंने विभिन्न जातियों और धर्मों के लिए अलग-अलग छात्रावासों की स्थापना की और मेधावी छात्रों के लिए कई छात्रवृत्तियाँ शुरू कीं।

उन्होंने वैदिक विद्यालयों की स्थापना की जो सभी जातियों और वर्गों के छात्रों को शास्त्र सीखने और सभी के बीच संस्कृत शिक्षा का प्रचार करने में सक्षम बनाते थे।

उन्होंने ग्राम प्रधानों या 'पाटिलों' को बेहतर प्रशासक बनाने के लिए उनके लिए विशेष स्कूल भी शुरू किए।

उन्होंने आह्वान किया कि "जातिवाद को समाप्त करना आवश्यक है।

उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए स्कूलों की स्थापना की और देवदासी प्रथा, भगवान को लड़कियों की पेशकश करने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाला एक कानून पेश किया, जिससे अनिवार्य रूप से लड़कियों का शोषण हुआ।

उन्होंने वर्ष 1917 में विधवा पुनर्विवाह को वैध बनाया और बाल विवाह को रोकने की दिशा में प्रयास किए।

उन्होंने कृषि पद्धतियों को आधुनिक बनाने के लिए उपकरण खरीदने के इच्छुक किसानों को ऋण उपलब्ध कराया और यहाँ तक कि किसानों को फसल की उपज और संबंधित तकनीकों को बढ़ाने के लिए सिखाने के लिए किंग एडवर्ड कृषि संस्थान की स्थापना की।

उन्होंने 18 फरवरी, 1907 को राधानगरी बाँध की शुरुआत की और यह परियोजना वर्ष 1935 में पूरी हुई।

वे कला और संस्कृति के महान संरक्षक थे और उन्होंने संगीत और ललित कलाओं के कलाकारों को प्रोत्साहित किया।

महान समाज सुधारक छत्रपति शाहूजी महाराज का निधन 6 मई, 1922 को हुआ था।

राघोबा राणे - Raghoba Rane : Biography & Short Introduction

राघोबा राणे - Biography & Short Introduction

राघोबा राणे का जन्म 26 जून, 1918 को धारवाड़ ज़िले के हवेली गाँव में हुआ था।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा जिला बोर्ड स्कूल में हुई तथा आगे की शिक्षा उत्तर कन्नड़ जिले के ग्राम चेंदिया में हुई।

10 जुलाई, 1940 को वे 'बॉम्बे इंजीनियर्स' की सेना में शामिल हो गए।

सेना में भर्ती होते ही राम राघोबा राणे अपने बैच में 'सर्वश्रेष्ठ प्रवेशी' बने तथा उन्हें पुरस्कार के रूप में 'कमांडेंट की छड़ी' मिली।

उन्हें 'नाइक' के पद पर पदोन्नत किया गया था।

राणे की ट्रेनिंग के बाद वे 28वीं फील्ड कंपनी में शामिल हो गए जो कंपनी 26वीं इन्फैंट्री डिवीजन के साथ बर्मा में लड़ रही थी।

उनके साहस और दृढ़ता के लिए उन्हें तुरंत 'हवलदार' के पद पर पदोन्नत किया गया।

उनके उत्कृष्ट नेतृत्व को देखते हुए उन्हें वर्ष 1948 में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया।

वर्ष 1948 में, पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने कश्मीर पर आक्रमण किया जिसके जवाब में, भारत ने जम्मू और कश्मीर के अपने पहले खोए हुए क्षेत्र को वापस पाने के लिए संघर्ष शुरू किया।

पाकिस्तानी आक्रमणकारियों से लड़ते हुए भारतीय सेना के लिए जम्मू-कश्मीर में झांगर, राजौरी, बरवालीरिज, चिंगास जैसे स्थानों पर कब्जा करना आवश्यक था।

दुश्मन ने इन जगहों के रास्ते में कई रुकावटें पैदा की तथा सड़कें नष्ट हो गई, फलस्वरूप गोला-बारूद का परिवहन करना, सैनिकों को ले जाना बहुत कठिन था।

ऐसे में रमा राणे ने सड़क को सुरक्षित यातायात के लिए खोलने का जोखिम भरा काम किया।

उनके दस्ते के दो लोग मारे गए और राणे सहित चार अन्य गोलाबारी में घायल हो गए।

स्वयं घायल होने पर भी उन्होंने 11 अप्रैल की देर रात 10 बजे तक अच्छे नेतृत्व, साहस, धैर्य, आत्म-विश्वास और प्रचंड राष्ट्रभक्ति के बल पर इन सड़कों को सुरक्षित एवं यातायात योग्य बनाने का कार्य किया। ताकि भारतीय टैंक आसानी से चिंगास तक पहुँच सके।

इस कार्य के लिए उन्हें 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया।

राणे 25 जून, 1958 को मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए तथा उसके बाद 7 अप्रैल, 1971 तक उन्होंने भारतीय सेना में पुनर्नियुक्त अधिकारी के रूप में काम किया।

11 अप्रैल, 1994 को पुणे के सैन्य अस्पताल में राणे का निधन हो गया।

पुणे के संगमवाड़ी इलाके में उनके नाम पर एक स्कूल की स्थापना की गई है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी - Shyama-Prashad-Mukharjee : Short Introduction

श्यामा प्रसाद मुखर्जी - Short Introduction

श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कलकत्ता में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

डॉ. मुखर्जी ने वर्ष 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

उन्होंने वर्ष 1923 में एम.ए. और वर्ष 1924 में बी.एल. किया।

वह एक भारतीय राजनीतिज्ञ, बैरिस्टर और शिक्षाविद् थे जिन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री के रूप में कार्य किया।

वर्ष 1934 में 33 वर्ष की आयु में, श्यामा प्रसाद मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के कुलपति बने।

कुलपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, रवींद्रनाथ टैगोर ने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को पहली बार बंगाली भाषा में संबोधित किया और भारतीय भाषा को सर्वोच्च परीक्षा के लिए एक विषय के रूप में प्रस्तुत किया गया।

वर्ष 1946 में उन्होंने बंगाल के विभाजन की माँग की ताकि इसके हिंदू-बहुल क्षेत्रों को मुस्लिम बहुल पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने से रोका जा सके।

वर्ष 1947 में उन्होंने सुभाषचंद्र बोस के भाई शरत बोस और बंगाली मुस्लिम राजनेता हुसैन शहीद सुहरावर्दी द्वारा बनाई गई एक संयुक्त लेकिन स्वतंत्र बंगाल के लिए एक असफल बोली का भी विरोध किया।

उन्होंने आधुनिक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ (BJS) की स्थापना की।

जम्मू और कश्मीर के मुद्दों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेद के कारण भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस से अलग होने के बाद, उन्होंने जनता पार्टी की स्थापना की, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी।

वर्ष 1953 में, कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे के विरोध में उन्होंने बिना अनुमति के कश्मीर में प्रवेश करने की कोशिश की और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

हिरासत के दौरान 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।

गणेश घोष - Ganesh Ghosh : Biography & short introduction

गणेश घोष (Ganesh Ghosh)

▪️गणेश घोष का जन्म 22 जून, 1900 को ब्रिटिशकालीन भारत के बंगाल में हुआ था।

▪️घोष विद्यार्थी जीवन में ही स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हो गए थे।

▪️वर्ष 1922 की गया (बिहार) कांग्रेस में जब बहिष्कार का प्रस्ताव स्वीकार हो गया तो गणेश घोष और उनके साथी अनंत सिंह ने नगर का सबसे बड़ा विद्यालय बंद करा दिया था।

▪️गाँधीजी के असहयोग आंदोलन स्थगित करने के पश्चात् गणेश ने कलकत्ता के जादवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया।

▪️वर्ष 1923 में उन्हें 'मानिकतल्ला बम कांड' के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया तथा कोई प्रमाण न मिलने के कारण उन्हें सज़ा तो नहीं हुई, पर सरकार ने 4 वर्ष के लिए नज़रबंद कर दिया था।

▪️वर्ष 1928 में वे बाहर निकले और कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया।

▪️घोष प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन के संपर्क में आए और शस्त्र बल से अंग्रेज़ों की सत्ता समाप्त करके चटगाँव में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की तैयारी करने लगे।

▪️पूरी तैयारी के बाद इन क्रांतिकारियों ने वहाँ के शस्त्रागार और टेलीफोन, तार आदि अन्य महत्त्व के स्थानों पर एक साथ आक्रमण कर दिया।

▪️कालांतर में इन्हें फ्रांसीसी बस्ती चंद्र नगर से गिरफ्तार करके कलकत्ता लाए और वर्ष 1932 में आजीवन कारावास की सज़ा देकर अंडमान भेज दिए गए।

▪️स्वतंत्रता के बाद भी उन्होंने अनेक आंदोलनों में भाग लिया और अपने जीवन के लगभग 27 वर्ष जेलों में बिताए।

▪️घोष  कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित हुए और वर्ष 1946 में जेल से छूटने पर कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए।

▪️गणेश घोष वर्ष 1952 में बंगाल विधानसभा के और वर्ष 1967 में लोकसभा के सदस्य चुने गए।

▪️गणेश घोष जी की मृत्यु 16 अक्टूबर, 1994 को कलकत्ता में हुआ था।

डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय : Dr. Subhash-mukhopadhyay - Short introduction & Biography

डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय (Dr. Subhash Mukhopadhyay)

  भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी, 1931 को हुआ था।

  सुभाष मुखोपाध्याय की शिक्षा कलकत्ता और उसके बाद एडिनबर्ग में हुई थी।

  इनकी विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक के जरिए भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म 3 अक्टूबर, 1978 को कलकत्ता में हुआ था।

डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय जब स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री लेकर कलकत्ता लौटे, तब तक टेस्ट ट्यूब बेबी पर विश्वभर में चर्चा तेज हो चुकी थी, लेकिन कोई सफल प्रयोग होना अभी बाकी था।

  25 जुलाई, 1978 को चिकित्सक पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स ने टेस्ट ट्यूब के जरिए बच्चे को जन्म देने की घोषणा कर इतिहास रच दिया।
 
25 जुलाई की घोषणा के महज 67 दिनों के भीतर 3 अक्टूबर, 1978 को डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने भी एक घोषणा की तथा उन्होंने दुनिया को बताया कि टेस्ट ट्यूब के जरिए बच्चे को जन्म देने का उन्होंने भी सफल प्रयोग कर लिया है।

  टेस्ट ट्यूब के जरिए जन्मीं बच्ची को नाम मिला 'दुर्गा'। इस नाम के पीछे की कहानी यह है कि 3 अक्टूबर, 1978 को दुर्गा पूजा का पहला दिन था, इसलिए उसका नामकरण 'दुर्गा' कर दिया गया।

  बेहद कम संसाधन व तकनीक के बावजूद डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का प्रयोग शत-प्रतिशत सफल रहा।

  डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय वैश्विक प्लेटफॉर्म पर जाकर दुनिया को अपने प्रयोग के बारे में बताना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसकी इजाजत उन्हें नहीं दी। इसके उलट उस वक्त की पश्चिम बंगाल की सरकार ने उनके दावों की जाँच के लिए 18 नवंबर, 1978 को एक कमेटी बना दी।

  उन्हें जापान में अपने प्रयोग के बारे में बताने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन सरकार ने उन्हें वहाँ भी जाने की इजाजत नहीं दी।

  वर्ष 1981 में सजा के तौर पर उनका ट्रांसफर रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑफ्थॉल्मोलॉजी (कलकत्ता) में कर दिया गया।

  उन्होंने 19 जून, 1981 को आत्महत्या कर ली।

  वर्ष 1986 में भारत के ही एक डॉक्टर टी. सी. आनंद कुमार ने भी टेस्ट ट्यूब पद्धति से एक बच्चे को जन्म दिया। उन्हें 'भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देने वाले पहले डॉक्टर' का खिताब मिला।

  वर्ष 1997 में उनके हाथ वे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज लग गए, जो इस बात की गवाही देते थे कि उनसे पहले डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया था। सभी दस्तावेजों के गहन अध्ययन के बाद डॉ. आनंद कुमार इस नतीजे पर पहुँचे कि भारत को टेस्ट ट्यूब बेबी की सौगात देने वाले पहले वैज्ञानिक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ही थे।

  डॉ. आनंद कुमार की पहल के चलते आखिरकार डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्मदाता का खिताब मिला।

  इसी विषय पर वर्ष 1990 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक तपन सिन्हा ने 'एक डॉक्टर की मौत' नाम से फिल्म बनाई।

सी. एस. वेंकटाचारी : C.S.Venkatachari - Short Introduction and Biography

सी. एस. वेंकटाचारी : C.S.Venkatachari - Short Introduction and Biography

● वेंकटाचारी का जन्म 11 जुलाई, 1899 को कोलार (कर्नाटक) में हुआ।

● वेंकटाचारी की शिक्षा महाराजा सेंट्रल कॉलेज, बैंगलौर (बेंगलुरू) में हुई।

● उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से वर्ष 1920 में रसायन विज्ञान में स्नातक किया।

● वर्ष 1922 में वे भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुए।

● वेंकटाचारी को वर्ष 1941 के बर्थडे ऑनर्स में ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (OBE) का अधिकारी नियुक्त किया गया।

● स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1947 में वे भारत की संविधान सभा के लिए चुने गए।

● हीरालाल शास्त्री के इस्तीफे के बाद उन्होंने 6 जनवरी, 1951 से 25 अप्रैल, 1951 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद संभाला।

● वर्ष 1951 में वेंकटाचारी भारत सरकार के राज्य मंत्रालय के सचिव बने।

● वर्ष 1955 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का सचिव नियुक्त किया गया।

● अगस्त, 1958 में वेंकटाचारी को कनाडा में भारत का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया।

● 16 जून, 1999 को उनका निधन हो गया।

चित्तरंजन दास : Chittranjan-Das - Short Introduction and Biography

चित्तरंजन दास : Chittranjan-Das - Short Introduction and Biography

एनेछिले साथे करे मृत्युहीन प्रान।
मरने ताहाय तुमी करे गेले दान।।

● चित्तरंजन दास का जन्‍म 5 नवंबर, 1870 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था।

● उनके पिता भुबन मोहन दास कोलकाता उच्‍च न्‍यायालय में एक जाने माने वकील थे।

● ब्रह्म समाज के एक कट्टर समर्थक देशबंधु अपनी तीक्ष्‍ण बुद्ध‍ि और पत्रकारीय दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे। चित्तरंजन दास कोलकाता उच्च न्यायालय के विख्यात वक़ील थे, जिन्होंने अलीपुर बम केस में अरविन्द घोष की पैरवी की थी।

● चित्तरंजन दास ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर गाँधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए।

● उन्होंने विलासी जीवन व्यतीत करना छोड़ दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार करते हुए सारे देश का भ्रमण किया।

● वे कोलकाता के नगर प्रमुख निर्वाचित हुए। उनके साथ सुभाषचन्द्र बोस कोलकाता निगम के मुख्य कार्याधिकारी नियुक्त हुए।

● चित्तरंजन दास वर्ष 1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे।

● उन्होंने मोतीलाल नेहरू और एन. सी. केलकर के सहयोग से 'स्वराज्य पार्टी' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था कि विधानमंडलों में प्रवेश किया जाए और आयरलैण्ड के देशभक्त श्री पार्नेल की कार्यनीति अपनाते हुए वर्ष 1919 के भारतीय शासन विधान में सुधार करने अथवा उसे नष्ट करने का प्रयत्न किया जाए।

● चित्तरंजन दास का 16 जून, 1925 को उनका निधन हो गया।

प्रफुल्लचन्द्र नटवरलाल भगवती (पी.एन. भगवती) : P.N.Bhagwati - Short Introduction and Biography

प्रफुल्लचन्द्र नटवरलाल भगवती (पी.एन. भगवती)

★ पी. एन. भगवती का जन्म  21 दिसम्बर, 1921 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ।

★ जस्टिस पी. एन. भगवती का निधन 15 जून, 2017 को नई दिल्ली में हुआ। 

★ पी. एन. भगवती जनहित याचिका के समर्थकों में से एक थे।

★ भारत में चलित न्यायालय (मोबाइल कोर्ट) इन्हीं की देन है।

★ इन्हें जुलाई, 1973 में उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

★ जस्टिस पी. एन. भगवती 12 जुलाई, 1985 से 20 दिसम्बर, 1986 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे।

★ इन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी अपनी सेवाएँ दी थी।

★ इन्होंने गुजरात में मुफ्त कानूनी सहायता और सलाह की पायलट परियोजना चलाने के लिए राज्य कानूनी सहायता समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।

जनहित याचिका/लोकहितवाद

(1) लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा याचिका स्वीकार करना जनहित याचिका या लोकहित वाद कहलाता है।

(2) लोकहित वाद जैसा शब्द संविधान में उल्लिखित नहीं है। यह अवधारणा अमेरिका से ली गई है।

★  पी. एन. भगवती भारत के 17वें मुख्य न्यायाधीश थे। इन्हें भारत में 'लोकहित वाद का जनक' कहा जाता है।

नोट – लोकहित वाद के सन्दर्भ में वी. आर. कृष्णन अय्यर का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। वे उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश थे। वे एकमात्र व्यक्ति हैं, जो व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका तीनों के सदस्य रह चुके हैं।

नोट – बेगम हुश्न आरा खातून बनाम बिहार राज्य (1978) के मामले से भारत में P.I.L. की शुरुआत मानी जाती है। इस मामले में अधिवक्ता कपिला हिंगोरानी थी, जिन्हें भारत में 'लोकहित की जननी' कहा जाता है। 

नोट – S. P. गुप्ता बनाम भारत संघ (1982) के मामले में लोकहित वाद (PIL) को भारतीय सन्दर्भ में परिभाषित किया गया।

बिरसा मुंडा (BIRSA MUNDA) : Short-Intoduction & Biography

बिरसा मुंडा (BIRSA MUNDA) : Short-Intoduction
▪️ 'धरती आबा' या 'जगत पिता' के नाम से प्रसिद्ध बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को राँची जिले के उलिहतु गाँव में हुआ था। वे छोटा नागपुर पठार क्षेत्र की मुंडा जनजाति के थे।

▪️ मुंडा रीति-रिवाज के अनुसार उनका नाम बृहस्पतिवार के हिसाब से बिरसा रखा गया था।

▪️ उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सलगा में अपने शिक्षक जयपाल नागो के मार्गदर्शन में प्राप्त की।

▪️ वर्ष 1899-1900 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुआ मुंडा विद्रोह छोटा नागपुर (झारखंड) के क्षेत्र में सर्वाधिक चर्चित विद्रोह था। इसे 'मुंडा उलगुलान' (विद्रोह) भी कहा जाता है।

▪️ इस विरोध में महिलाओं की उल्लेखनीय भूमिका रही और इसकी शुरुआत मुंडा जनजाति की पारंपरिक व्यवस्था खूँटकटी की ज़मींदारी व्यवस्था में परिवर्तन के कारण हुई थी।

▪️ उन्होंने धर्म को राजनीति से जोड़ दिया और एक राजनीतिक-सैन्य संगठन बनाने के उद्देश्य से प्रचार करते हुए गाँवों की यात्रा की।

▪️ बिरसा मुंडा ने आदिवासी समुदाय को लामबंद किया और औपनिवेशिक अधिकारियों को आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा हेतु कानून बनाने के लिए मज़बूर किया।

▪️ उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप 'छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम' पारित किया गया, जिसने आदिवासी से गैर-आदिवासियों में भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित कर दिया।

▪️ 3 मार्च, 1900 को बिरसा मुंडा को ब्रिटिश पुलिस ने चक्रधरपुर के जामकोपई जंगल में उनकी आदिवासी छापामार सेना के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।

▪️ 9 जून, 1900 को राँची जेल में उनका निधन हो गया।

नटराज रामकृष्ण (Natraj Ramakrishna) : Short Introduction & Biography

नटराज रामकृष्ण : Short Introduction

● नटराज रामकृष्ण का जन्म 21 मार्च, 1923 को, बाली, इंडोनेशिया में आंध्र प्रदेश के एक भारतीय प्रवासी परिवार में हुआ था।

● मात्र 18 साल की उम्र में ही रामकृष्ण को मराठा के तत्कालीन शासक द्वारा नागपुर में 'नटराज' की उपाधि दी गई थी।

● नटराज रामकृष्ण को 700 साल पुराने नृत्य रूप 'पेरिनी शिवतांडवम्' को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है।

● आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीलम संजीव रेड्डी के अनुरोध पर नटराज रामकृष्ण ने हैदराबाद में 'नृत्य निकेतन' नामक नृत्य विद्यालय की स्थापना की थी।

● उन्होंने कुचिपुड़ी को पारंपरिक नृत्य रूप के साथ अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई तथा वर्ष 1991 में उन्हें 'राजा-लक्ष्मी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।

● नटराज रामकृष्ण ने डोमारस, गुरवाययालु, उरुमुलु और वेदी भगवतुलु जैसे नृत्य कलाकारों को भी प्रोत्साहित किया।

● उन्होंने भगवान वेंकटेश्वर के जीवन की रचना 'नृत्य नाटक' (बैले) के रूप में की थी।

● भारत सरकार द्वारा प्रायोजित एक शोध छात्र के रूप में नटराज रामकृष्ण ने तत्कालीन यूएसएसआर (अब रूस) और फ्रांस में भारतीय नृत्य कला का प्रचार करने के लिए काम किया, जिससे भारतीय और पश्चिमी शास्त्रीय और लोक नृत्यों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया।

● वर्ष 1992 में उन्हें 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया।

● उन्हें 21 जनवरी, 2011 को संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया था।

● 7 जून, 2011 को 88 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया।

वी. वी. सुब्रह्मण्यम अय्यर ( V. V. Subrahmanyam ) - Short Introduction

वी. वी. सुब्रह्मण्यम अय्यर - Short Introduction & Biography

▪️क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त वराहनेरी वेंकटेश सुब्रह्मण्यम अय्यर का जन्म 2 अप्रैल, 1881 को मद्रास प्रदेश के तिरुचिरापल्ली जिले में हुआ था।

▪️वह स्वतंत्रता सेनानियों के एक चरमपंथी समूह से संबंधित थे।

▪️कालांतर में अय्यर बैरिस्टर ऑफ़ लॉ की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए जहाँ उनकी मुलाकात वीर सावरकर से हुई।

▪️वीवीएस अय्यर ने सावरकर को भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से पंजाब, महाराष्ट्र, बंगाल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में विरोध प्रदर्शन आयोजित करने में मदद की।

▪️उन्होंने 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस – 1857' (मराठी में सावरकर द्वारा लिखित) पुस्तक के अंग्रेजी में अनुवाद का पर्यवेक्षण किया और इसे गुप्त रूप से भारत में प्रसारित किया।

▪️इसका तमिल में अनुवाद भी किया गया था और पांडिचेरी में सुब्रह्मण्यम बाराठी द्वारा संचालित 'इंडिया' पत्रिका में प्रकाशित किया गया।

▪️हालाँकि उन्होंने लंदन में बैरिस्टर ऑफ लॉ की परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन उन्होंने डिग्री लेने से इनकार कर दिया।

▪️भारत लौटने के बाद वे भारती और मंडयम श्रीनिवासचारी जैसे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ पांडिचेरी में बस गए।

▪️वर्ष 1917 में गाँधी की पांडिचेरी यात्रा के दौरान, वीवीएस अय्यर उनसे मिले और अहिंसा के अनुयायी बन गए।

▪️वी. वी. सुब्रह्मण्यम अय्यर वर्ष 1920 तक पांडिचेरी में रहे और यहाँ उनकी मुलाकात महर्षि अरविंद से हुई।

▪️पांडिचेरी से मद्रास आने के बाद उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला और सजा हुई।

▪️वे बाल गंगाधर तिलक के अनुयायी तथा तमिल पत्रिका 'देसबक्थन' के संपादक थे।

▪️उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण फ्रांसीसी अधिकारियों ने भी एक बार उन्हें पांडिचेरी से देश निकाला देकर अलजीयर्स पहुँचा दिया था।

▪️वराहनेरी वेंकटेश सुब्रह्मण्यम अय्यर का 3 जून, 1925 को निधन हो गया।

अहिल्याबाई होल्कर ( Ahilyabai holkar) - Short Introduction

अहिल्याबाई होल्कर

▪️अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई, 1725 में हुआ था।

▪️इनका विवाह इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था।

▪️मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था।

▪️रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. तक बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया।

▪️रानी अहिल्याबाई ने भारत के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक मन्दिरों, धर्मशालाओं और अन्नसत्रों का निर्माण करवाया।

▪️रानी अहिल्याबाई ने इसके अलावा काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवायीं।

▪️उन्‍होंने 1777 ई. में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।

▪️उनका सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य-पालन और परमार्थ की साधना का बन गया। भगवान शिव की वह बड़ी भक्त थी।

▪️13 अगस्त, 1795 को उनका निधन हो गया।

वीर बहादुर सिंह ( Veer Bahadur Singh) - Short Introduction

वीर बहादुर सिंह ( Veer Bahadur Singh) - Short Introduction & Biography

●  वीर बहादुर सिंह का जन्म 18 जनवरी, 1935 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ।

●  उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. तथा डी.लिट्‌ की मानद उपाधि प्राप्त की थी।

●  कृषि, राजनीति एवं समाज सेवा वीर बहादुर सिंह जी के मुख्य कार्यक्षेत्र थे।

●  उन्होंने यूथ डेलीगेशन के सदस्य की हैसियत से सोवियत संघ और कांग्रेस (आई) प्रतिनिधि मंडल के नेता के रूप में इंग्लैण्ड, रूमानिया, सोवियत संघ और फ्रांस की यात्रा की थी।

●  बहादुर सिंह वर्ष 1967 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के पनियारा निर्वाचन क्षेत्र तत्कालीन जिला गोरखपुर से सर्वप्रथम निर्वाचित हुए।

●  कालांतर में वर्ष 1969, 1974, 1980 और 1985 में पुनः उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।

●  बहादुर सिंह वर्ष 1980 से 1985 तक कैबिनेट मंत्री रहे।

●  वीर बहादुर सिंह 24 सितंबर, 1985 से 24 जून, 1988 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

●  30 मई, 1989 को उनका निधन हो गया।

चौधरी चरण सिंह ( Choudhary Charan Singh ) - Short Introduction

चौधरी चरण सिंह - Short Introduction & Biography

श्री चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं वर्ष 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। कानून में प्रशिक्षित श्री सिंह ने गाजियाबाद से अपने पेशे की शुरुआत की। वे वर्ष 1929 में मेरठ आ गए और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।

वे सबसे पहले वर्ष 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

वे वर्ष 1946 में पंडित गोविंद वल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया। जून, 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया।

बाद में वर्ष 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल, 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था।

श्री सी.बी. गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह एवं कृषि मंत्री (1960) थे। श्रीमती सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में वे कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे। उन्होंने वर्ष 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं वर्ष 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया।

कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी, 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालाँकि राज्य में 2 अक्टूबर, 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।

श्री चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की एवं उनकी ख्याति एक ऐसे कड़क नेता के रूप में हो गई थी जो प्रशासन में अक्षमता, भाई – भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। प्रतिभाशाली सांसद एवं व्यवहारवादी श्री चरण सिंह अपनी वाक्पटुता एवं दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।

उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके।

चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक जनता पार्टी की सरकार में भारत के प्रधानमंत्री रहे।

देश में कुछ-ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की हो। एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले श्री चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला।

श्री चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे।

उन्होंने कई किताबें लिखी जिसमें 'ज़मींदारी उन्मूलन', 'भारत की गरीबी और उसका समाधान', 'किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, 'प्रिवेंशन ऑफ़ डिविज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम', 'ज्वॉइन्ट फार्मिंग एक्स-रेय्‌ड' आदि प्रमुख हैं।

29 मई, 1987 को उनका देहांत हो गया।

वीर सावरकर ( Veer Sanvarkar) - Short introduction

वीर सावरकर - Short introduction & Biography

वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के भागुर ग्राम में हुआ था।

सावरकर यूनाइटेड किंगडम गए और 'इंडिया हाउस' (India House) तथा 'फ्री इंडिया सोसायटी' (Free India Society) जैसे संगठनों से जुड़े।

सावरकर ने 'द हिस्ट्री ऑफ द वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस' नामक एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने 1857 के सिपाही विद्रोह में इस्तेमाल किए गए छापामार युद्ध के तरीकों के बारे में लिखा था।

उन्होंने 'हिंदुत्व: हिंदू कौन है?' नामक पुस्तक भी लिखी।

वर्ष 1904 में विनायक दामोदर सावरकर और उनके भाई गणेश दामोदर सावरकर द्वारा 'अभिनव भारत सोसायटी' (यंग इंडिया सोसायटी) नामक एक भूमिगत सोसायटी की स्थापना की गई।

वीर सावरकर को वर्ष 1909 के मार्ले-मिंटो सुधार (भारत परिषद् अधिनियम, 1909) के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

वर्ष 1910 में क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस के साथ संबंधों के लिए गिरफ्तार किया गया।

सावरकर को नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के लिए उकसाने तथा भारतीय दंड संहिता 121-ए के तहत राजा (सम्राट) के खिलाफ साजिश के आरोप में दोषी ठहराया गया और 50 वर्ष के कारावास की सज़ा सुनाई गई, जिसे काला पानी भी कहा जाता है, उन्हें वर्ष 1911 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित सेलुलर जेल ले जाया गया।

प्रारंभ में नासिक में मित्र मेला के रूप में स्थापित समाज कई क्रांतिकारियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ भारत तथा लंदन के विभिन्न हिस्सों में शाखाओं से जुड़ा था।

सावरकर ने इटैलियन राष्ट्रवादी ग्यूसेप मैज़िनी के विचारों के आधार पर 'फ्री इंडिया सोसायटी' की स्थापना की।

अखिल भारत हिंदू महासभा की स्थापना (वर्ष 1907) करने वाले और अखिल भारतीय सत्रों की अध्यक्षता करने वाले प्रमुख व्यक्तित्वों में पंडित मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, वीर विनायक दामोदर सावरकर आदि शामिल थे।
वे वर्ष 1937 से वर्ष 1943 तक हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे।

26 फरवरी, 1966 को सावरकर का निधन हो गया। 

पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pt Jawahar Lal Nehru) : Short Introduction & Biography

पंडित जवाहर लाल नेहरू : Short Introduction

● पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर, 1889 को इलाहाबाद में हुआ था।

● उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर निजी शिक्षकों से प्राप्त की।

● पंद्रह वर्ष की उम्र में वे इंग्लैंड चले गए और हैरो में दो साल रहने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ से उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

● वर्ष 1912 में भारत लौटने के बाद वे सीधे राजनीति से जुड़ गए।

● वर्ष 1912 में उन्होंने एक प्रतिनिधि के रूप में बाँकीपुर सम्मेलन में भाग लिया एवं 1919 में इलाहाबाद के होम रूल लीग के सचिव बने।

● वर्ष 1916 में वे महात्मा गाँधी से पहली बार मिले जिनसे वे काफी प्रेरित हुए। उन्होंने 1920 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया।

● वर्ष 1920-22 के असहयोग आंदोलन के सिलसिले में उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा।

● पंडित नेहरू सितंबर, 1923 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने।

● वर्ष 1928 में लखनऊ में साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस का नेतृत्व करते हुए उन पर लाठी चार्ज किया गया था।

● 29 अगस्त, 1928 को उन्होंने सर्वदलीय सम्मेलन में भाग लिया एवं वे उन लोगों में से एक थे जिन्होंने भारतीय संवैधानिक सुधार की नेहरू रिपोर्ट पर अपने हस्ताक्षर किए थे। इस रिपोर्ट का नाम उनके पिता श्री मोतीलाल नेहरू के नाम पर रखा गया था। उसी वर्ष उन्होंने 'भारतीय स्वतंत्रता लीग' की स्थापना की एवं इसके महासचिव बने। इस लीग का मूल उद्देश्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से पूर्णतः अलग करना था।

● वर्ष 1929 में पंडित नेहरू भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए जिसका मुख्य लक्ष्य देश के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना था।

● उन्हें 1930-35 के दौरान नमक सत्याग्रह एवं कांग्रेस के अन्य आंदोलनों के कारण कई बार जेल जाना पड़ा।

● उन्होंने 14 फ़रवरी, 1935 को अल्मोड़ा जेल में अपनी 'आत्मकथा' का लेखन कार्य पूर्ण किया।

● पंडित नेहरू ने भारत को युद्ध में भाग लेने के लिए मजबूर करने का विरोध करते हुए व्यक्तिगत सत्याग्रह किया, जिसके कारण 31 अक्टूबर, 1940 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

● 8 अगस्त, 1942 को उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किला ले जाया गया। यह अंतिम मौका था जब उन्हें जेल जाना पड़ा एवं इसी बार उन्हें सबसे लंबे समय तक जेल में समय बिताना पड़ा।

● जनवरी, 1945 में अपनी रिहाई के बाद उन्होंने राजद्रोह का आरोप झेल रहे आईएनए के अधिकारियों एवं व्यक्तियों का कानूनी बचाव किया।

● मार्च, 1946 में पंडित नेहरू ने दक्षिण-पूर्व एशिया का दौरा किया। 6 जुलाई 1946 को वे चौथी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए एवं फिर 1951 से 1954 तक तीन और बार वे इस पद के लिए चुने गए।

● पंडित जवाहर लाल नेहरू 15 अगस्‍त, 1947 से  27 मई, 1964 तक भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहे।

●  27 मई, 1964 को उनका देहावसान हो गया।

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बलबीर सिंह ( Balveer Singhgg ) : Short Introduction

बलबीर सिंह

● बलबीर सिंह का जन्म 10 अक्टूबर, 1924 में पंजाब राज्य के जालंधर ज़िले में हरीपुर नामक स्थान पर हुआ था।

● बलबीर सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा देव समाज स्कूल तथा डी.एम. कॉलेज मोगा में हुई तथा उन्होंने अमृतसर के खालसा कॉलेज से स्नातक शिक्षा प्राप्त की।

● बलबीर सिंह को पहली बार वर्ष 1947 में भारतीय टीम में शामिल किया गया।

● उन्होंने भारत को श्रीलंका के खिलाफ विजय दिलाई। वर्ष 1950 में अफ़ग़ानिस्तान तथा सिंगापुर के खिलाफ तथा वर्ष 1954 में मलेशिया के खिलाफ भारतीय टीम का नेतृत्व करते हुए उन्होंने टीम को विजय दिलाई।

● वे 'इंडिया वंडर्स' टीम के भी सदस्य थे। इस टीम ने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर तथा श्रीलंका के खिलाफ 1955 में अनेक मैच खेले।

● बलबीर सिंह हॉकी टीम के सेंटर-फॉरवर्ड खिलाड़ी रहे तथा तीन बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

● लंदन ओलंपिक (1948), हेलंसिकी (1952) और मेलबर्न (1956) में स्वर्ण जीतने वाले बलबीर सिंह सीनियर वर्ष 1975 में एकमात्र विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के मैनेजर थे।

● वर्ष 1957 में बलबीर सिंह को 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया।

● वे 'पंजाब स्टेट स्पोर्ट्स काउंसिल' के सेक्रेटरी रहे तथा वर्ष 1982 में रिटायरमेंट तक पंजाब सरकार के खेल निदेशक रहे।

● मोगा में उनके नाम पर स्टेडियम का नाम रखा गया है।

● बलबीर सिंह ने 'द गोल्डन हैट ट्रिक' नामक पुस्तक भी लिखी है।

● बलबीर सिंह सीनियर का निधन 25 मई, 2020 को 96 साल की उम्र में मोहाली में हुआ।

रास बिहारी बोस ( Ra's Bihari Bos): Short Introduction and Biography

रास बिहारी बोस

● रास बिहारी बोस का जन्म 25 मई, 1886 को बंगाल प्रांत के सुबलदाहा गाँव में हुआ था।

● बोस ने गदर आंदोलन का नेतृत्‍व करने से लेकर भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना तक स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

● रास बिहारी बोस 1789ई. की फ्रांसीसी क्रांति से अत्यधिक प्रभावित थे।

● वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन और उसके बाद की घटनाओं ने रास बिहारी बोस को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

● उन्होंने प्रख्यात क्रांतिकारी नेता जतिन बनर्जी के मार्गदर्शन में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन किया।

● गदर आंदोलन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका तो निभाई किंतु यह अल्पकालिक थी, क्योंकि जल्द ही ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह की उनकी योजना का खुलासा हो गया था, जिसने अंततः उन्हें जापान जाने के लिए मजबूर कर दिया, जहाँ उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों का नया अध्याय उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।

● उन्होंने एक जापानी महिला से शादी की और 1923 में जापान के नागरिक बन गए।

● द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, बोस ने जापानी अधिकारियों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करने के लिए राजी किया। उन्होंने विदेशों में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

● उन्होंने 'इंडियन इंडिपेंडेंस लीग' की स्थापना की।

● वर्ष 1942 में जापान के टोक्यो में रास बिहारी बोस ने 'आज़ाद हिंद फौज' की स्थापना की। 'आज़ाद हिंद फौज' की स्थापना का उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ना था।

● जापान ने 'आज़ाद हिंद फौज' के गठन में सहयोग दिया तथा कालांतर में 'आज़ाद हिंद फौज' की कमान सुभाषचंद्र बोस के हाथों में सौंप दी गई।

● स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए जापान की सरकार ने उन्हें 'सेकंड ऑर्डर ऑफ मेरिट ऑफ द राइज़िंग सन' से सम्मानित किया था।

● बोस की 21 जनवरी, 1945 को 59 वर्ष की आयु में तपेदिक से मृत्यु हो गई।