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श्री विश्वभूषण हरिचंदन : जीवन परिचय (Short Introduction)

श्री विश्वभूषण हरिचंदन : जीवन परिचय छत्तीसगढ़ के मनोनीत राज्यपाल


रायपुर,  22 फरवरी 2023

छत्तीसगढ के मनोनीत राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन का जीवन परिचय इस प्रकार है:-

पिता का नाम - स्वर्गीय श्री परशुराम हरिचंदन। वे एक साहित्यकार, नाटककार और स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रता के बाद वे अविभाजित पुरी जिला परिषद के प्रारंभ से लेकर इसके उन्मूलन तक इसके उपाध्यक्ष रहे।
जन्म तिथि -  3 अगस्त 1934

जन्म स्थान - ओडिशा के खोरधा जिले के बानपुर में

शैक्षणिक योग्यता : एस.सी.एस. कॉलेज, पुरी से अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री। एम.एस. लॉ कॉलेज, कटक से एल.एल.बी. की डिग्री।

जीवनसाथी: श्रीमती सुप्रभा हरिचंदन

पुत्र :      श्री पृथ्वीराज हरिचंदन
           श्री प्रसनजीत हरिचंदन

  ओडिशा में योद्धाओं और स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आने वाले, श्री विश्वभूषण हरिचंदन, 1962 में ओडिशा के उच्च न्यायालय बार और वर्ष 1971 में भारतीय जनसंघ में शामिल हुए। उन्होंने काफी कम समय में अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बल पर एक वकील और एक राजनीतिक नेता के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की।

   उन्होंने ऐतिहासिक जे.पी. आंदोलन में लोकतंत्र के समर्थन की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जिसके लिए उन्हें आपातकाल के दौरान कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा था। हाई कोर्ट बार एसोसिएशन एक्शन कमेटी के अध्यक्ष के रूप में श्री हरिचंदन ने 1974 में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के अधिक्रमण के खिलाफ ओडिशा में वकीलों के आंदोलन का नेतृत्व किया

  ओडिशा की राजनीति के दिग्गज श्री हरिचंदन पांच बार ओडिशा की राज्य विधानसभा के लिए वर्ष 1977, 1990, 1996, 2000 और 2004 में चुने गए। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में 95,000 मतों के अंतर से जीत हासिल की, जिसने ओडिशा में पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।

  श्री हरिचंदन ओडिशा सरकार में 4 बार मंत्री रहे। वर्ष 1977, 1990, 2000 मेेेें तथा 2004 से 2009 तक वे मंत्री  बने रहे। अपने मंत्रिस्तरीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने राजस्व, कानून, ग्रामीण विकास, उद्योग, खाद्य और नागरिक आपूर्ति, श्रम और रोजगार, आवास, सांस्कृतिक मामले, संसाधन विकास विभाग,मत्स्य पालन और पशु-पालन जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला। वे 1980 में ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष थे और 1988 तक तीन और कार्यकालों के लिए अध्यक्ष चुने गए। वे 13 वर्षों तक यानी 1996 से 2009 तक राज्य विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता भी रहे। मंत्री मंडल में रहते हुए उन्होंने प्रमुख भूमिकाएं निभाई, जिसके लिए वे सदैव जनता की नजरों में भी बने रहे। वह हमेशा लोगों के मुद्दों को उठाते हैं और उनके लिए लड़ते रहें हैं, जिस कारण से प्रशासकों और राजनेताओं द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता है, भले ही वे किसी भी पार्टी से जुडे़ रहे।

  श्री हरिचंदन हमेशा मानवाधिकार, लोकतंत्र, लोकतांत्रिक मूल्यों, नागरिक-अधिकारों, विशेष रूप से दलितों के अधिकारों और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी हैं।

  श्री हरिचंदन एक प्रतिष्ठित स्तंभकार हैं जिन्होंने समकालीन राजनीतिक मुद्दों, ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मामलों पर कई लेख लिखे हैं जो ओडिशा के सभी प्रमुख समाचार पत्रों और दिल्ली के कुछ अंग्रेजी साप्ताहिकों में प्रकाशित हुए हैं।

   साहित्यिक योगदान:

उनके प्रमुख साहित्यिक योगदान में अनेकों रचनायंे शामिल है जिसमें ''महासंग्रामर महानायक'', जो 1817 की पाइक क्रांति के सर्वोच्च सेनापति बक्सी जगबंधु पर केंद्रित एक नाटक है. उन्होंने छह एकांकी नाटक भी लिखे जो निम्नलिखित हैं - मरुभताश, राणा प्रताप, शेष झलक, जो मेवाड के महारानी पद्मिनी पर आधारित है। अष्ट शिखा, जो तपांग दलबेरा के बलिदान, पर आधारित है। मानसी, (सामाजिक) और अभिशप्त कर्ण, (पौराणिक) नाटक है। उनकी 26 लघु कथाओं के संकलन का नाम ''स्वच्छ सासानारा गहन कथा'' है, तथा ''ये मतिर डाक'' उनके कुछ चुनिंदा प्रकाशित लेखों का संकलन है। ''संग्राम सारी नहीं", उनकी आत्मकथा है, जिसमें उनके लंबे सार्वजनिक जीवन के दौरान राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य क्षेत्रों में उनके संघर्षों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

  राजनीतिक भुमिका:

            वर्ष 1977 में कैबिनेट मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, आवश्यक वस्तुएं, जिनकी  आपातकाल के दौरान कमी पाई गयी थी। उन्होनें आवश्यक वस्तुओ को न केवल स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया बल्कि मूल्य-रेखा को लगातार बनाए रखा। कालाबाजारी करने वालों और जमाखोरों के खिलाफ उनकी कड़ी कार्रवाई जिसने उन्हें ओडिशा में बहुत लोकप्रिय बना दिया।

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