विश्व पटल पर मोदी की कूटनीति: क्यों बदल रहे हैं डोनाल्ड ट्रंप के तेवर?
नमस्कार, दुनिया में आजकल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त चर्चा है। इंटरनेशनल मीडिया में पीएम मोदी छाए हुए हैं, फिर चाहे वो पूरब की मीडिया हो या पश्चिम की। हर चर्चा में बस एक ही बात निकल कर सामने आ रही है कि बॉस, ट्रंप को इस बार दमदार जवाब देने वाला मिला है कोई। वेस्टर्न मीडिया में जियोपॉलिटिक्स के एक्सपर्ट कह रहे हैं कि ट्रंप ने पीएम मोदी और नए भारत को आंकने में बड़ी भूल कर दी। एक्सपर्ट तो यह भी कह रहे हैं कि मोदी दोस्ती निभाने में जितने ईमानदार हैं, उतने ही कट्टर राष्ट्रहित को लेकर हैं। पुतिन और रूस को लेकर पीएम मोदी की प्रतिबद्धता की भी चर्चा हो रही है। यह सब जानते हैं कि पश्चिमी देशों को रूस और पुतिन फूटी आंख नहीं सुहा रहे। बावजूद इसके मोदी और पुतिन की केमिस्ट्री को लेकर भी मोदी के रुख की सराहना हो रही है। यह होती है डिप्लोमेसी। इसे कहते हैं बैलेंस्ड अप्रोच।
आज का चैप्टर बड़ा स्पेशल है और इस लिहाज़ से स्पेशल है कि क्या मोदी ने एससीओ के मंच से एक स्पष्ट लक्ष्मण रेखा खींच दी है। मोदी नीति का असर यह है कि यूरोप के कई देश तक अमेरिका को आगाह कर रहे हैं कि भाई अगर ग्लोबल साउथ और भारत की अनदेखी करोगे तो हम हार जाएंगे। तो जो घर में बैठे कुछ लोग घूम-घूम कर झुनझुना बजा रहे हैं कि यह मोदी की नीति तो फेल हो गई, उन्हें यूरोप से उठती आवाज़ें आज सुननी चाहिए और वो आवाज़ें मैं आपको सुनाऊंगा क्योंकि यह देश की बात है, राष्ट्रहित की बात है। आज के इस चैप्टर में बात करूंगा कि ट्रंप की टेरिफ नीति के भारत के ट्रेड पर इफ़ेक्ट ज़्यादा है या अमेरिका पर इसके साइड इफ़ेक्ट ज़्यादा है। बनारस से लेकर सूरत और मुंबई तक के कारोबारी क्या कह रहे हैं, यह भी आपको दिखाऊंगा। इसलिए क्लास में बने रहने का है, बॉस। क्योंकि मोदी की विदेश नीति से लेकर ट्रेड नीति तक का क्रैश कोर्स है यह, आप इसको समझ कर चलिए। रिपोर्ट देखिए।
ट्रंप का यू-टर्न: भारत और रूस को खोने का पछतावा
विश्व के मंच पर एक दृश्य उभरा, राजनीति का नया दर्शन उतरा। राग और रंग सधे संवाद चले, उन्मुक्त हंसी गूंजी, ठहाके उड़े और उनका मन बदल गया। किसी ने मचल के कहा, "पूरब से चली हवा ने पश्चिम से सूरज उगा दिया।" डॉनल्ड ट्रंप जो अकड़ में थे, खबर में थे, इंटरनेशनल मीडिया के चारों पहर में थे, अचानक उनके सुर बदल गए। वो जो हिमे जमे बैठे थे, चार दिन में पिघल गए।
एक दिन पहले शुक्रवार को ही ट्रंप ने एक पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि "ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को खो दिया।" ट्रंप ने चीन का ज़िक्र करते हुए कहा कि "हमने भारत और रूस को चीन के सबसे गहरे अंधेरे रास्ते पर खो दिया।" ट्रंप ने कहा कि "उम्मीद है इन सबका भविष्य लंबा और समृद्ध हो।"
लेकिन 24 घंटे के भीतर ही ट्रंप का रुख पूरी तरह बदल गया। उन्होंने कहा कि "मैं मोदी के साथ हमेशा दोस्ती रखूंगा। वह एक महान प्रधानमंत्री हैं। भारत और अमेरिका के बीच एक विशेष रिश्ता है। चिंता की कोई बात नहीं है। हमारे बीच कभी-कभी ऐसे पल आते हैं।"
इस बदले माहौल की कूटनीति की विवेचना अलग-अलग कोणों से होती रहेगी। लेकिन भारत-अमेरिका संबंधों और ट्रंप के बीते तमाम बयानों पर संतुलन, संयम और संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ने वाले पीएम मोदी ने ट्रंप के ताज़ा बयान पर पहली प्रतिक्रिया दी। उन्होंने एक्स पर लिखा, "राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक मूल्यांकन की हम तहे दिल से सराहना करते हैं। उनका पूर्ण समर्थन करते हैं। भारत और अमेरिका के बीच एक अत्यंत सकारात्मक और दूरदर्शी, व्यापक एवं वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है।" रूस-यूक्रेन जंग को लेकर जिस तरह से ट्रंप और उनके बड़बोले एडवाइजर इनडायरेक्टली भारत को जिम्मेदार ठहरा रहे थे, उनको भी जवाब मिल चुका है, खासकर ट्रंप के बदले हुए रुख के साथ कि भारत सही था और रहेगा। भारत-अमेरिका संबंधों के इस पूरे घटनाक्रम में एक बात शीशे की तरह साफ़ हो चुकी है कि मोदी या भारत की स्वतंत्र नीति को कोई दूसरा देश डिक्टेट नहीं कर सकता। जिसके बारे में यूरोप के कई देश लगातार ट्रंप नीति की आलोचना करते हुए ग्लोबल वेस्ट को आगाह करते रहे थे कि भारत को लेकर ट्रंप की ज़िद उन्हें खेल में पराजित कर बाहर कर देगी। तो क्या ट्रंप का ताज़ा जवाब उनके बड़बोले एडवाइजर और उनके कॉमर्स मिनिस्टर के लिए भी है जो भारत के बारे में अपनी औक़ात से ज़्यादा बोल रहे थे? तो हावर्ड लूटने की थ्योरी की लुटिया डूब गई और नवारों की फूट डालो और ट्रेड करो वाली नाव भी। लेकिन सवाल यह है कि यह मंडली इतनी बेचैन क्यों हो गई थी? जवाब है मोदी नीति।
ट्रंप के टेरिफ़ का उलटा असर: अमेरिका मंदी की कगार पर
तो बस एक दांव, बस एक चाल, बस एक नीति, धैर्य, धारणा और धर्म की और मोदी ने ट्रंप नीति को चारों खाने चित्त कर दिया। क्या दुनिया के इन तीन शक्तिशाली राष्ट्रध्यक्षों की इस ऐतिहासिक मुलाक़ात ने बहुध्रुवीय ग्लोबल ऑर्डर की रूपरेखा दुनिया के सामने रख दी है, जिसके केंद्र में मोदी हैं, मोदी का नया भारत है।
विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि राजनीति वह कला है जिसमें कल, अगले हफ़्ते, अगले महीने, अगले साल क्या होगा, यह बताया जाता है और बाद में यह समझाया जाता है कि ऐसा क्यों नहीं हुआ। तो क्या ट्रंप को यह एहसास हो गया कि उनकी राजनीति इसी दिशा में जा रही है क्योंकि ट्रंप के टेरिफ़ वाले दांव के साइड इफ़ेक्ट के लक्षण ग्लोबल रेटिंग एजेंसी एमडीएस ने बताना शुरू कर दिया था। एमडीएस की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका गंभीर मंदी की कगार पर पहुंच गया है, जिससे अमेरिका की इकॉनमी को भारी नुक़सान हो सकता है। अमेरिका की जीएसटी का 1/3 हिस्सा बनाने वाले राज्य या तो मंदी की चपेट में हैं या मंदी के हाई रिस्क पर पहुंच चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सरकारी नौकरियों में कटौती के कारण मंदी का संकट गहराता जा रहा है। जब से ट्रंप राष्ट्रपति बने हैं, तब से सिर्फ वाशिंगटन डीसी में ही 22,000 से ज़्यादा सरकारी नौकरियां चली गईं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अमेरिका का मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई यानी परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स घटकर 48% के करीब पहुंच चुका है। इस वक़्त अमेरिका में उद्योगों की स्थिति यूएस ग्रेट रिसेशन के समय से भी बदहाल बताई गई है। मूडीज़ ने इसकी बड़ी वजह दुनिया भर के देशों में टेरिफ़ अटैक को बताया है और कहा गया है कि अमेरिका के उद्योग ट्रंप प्रशासन की इंपोर्ट ड्यूटी के गलत प्रभावों से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बहुत ज़्यादा इंपोर्ट ड्यूटी की वजह से अमेरिका में प्रोडक्ट्स का निर्माण अब मुश्किल होता जा रहा है। अमेरिका में कम होती नौकरियों पर ट्रंप सरकार इस कदर घिर रही है कि वहां की मीडिया में उसकी फ़ज़ीहत होनी शुरू हो चुकी है। ट्रंप की टेरिफ़ नीति के बैकफायर ने ट्रंप को भारत-अमेरिका संबंधों के बीच एक संवाद की खिड़की खोलने को क्या मजबूर कर दिया। क्योंकि कुछ दिन पहले तक ट्रंप भारत-रूस संबंधों और टेरिफ़ के प्रश्नों पर भड़कते तक दिखे थे। ज़रा ग़ौर कीजिए कि ट्रंप की दोस्ती वाला बयान पीएम मोदी के जीएसटी वाले दांव के चलने और आगे भी कई और रिफॉर्म्स लाने की तैयारी के बीच आया है। जिन सुधारों को ट्रंप टेरिफ़ के इफ़ेक्ट को कम करने और कारगर तरीक़े से उनसे निपटने के लिए अहम माना जा रहा है।
मोदी का 'फुल-प्रूफ' प्लान: ट्रंप के टेरिफ़ का काउंटर प्लान
तो ट्रंप टेरिफ़ के भारतीय अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर का काउंटर प्लान क्या है? क्या मोदी ने अपना फुल-प्रूफ प्लान एक्टिव कर दिया है? बड़ा सवाल यही है कि क्या पीएम मोदी ने ट्रंप टैरिफ़ का काउंटर प्लान एक्टिव कर दिया है? क्या जीएसटी रिफॉर्म वाला दाव उसी काउंटर प्लान का हिस्सा है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुप बैठने वालों में से तो नहीं हैं। भारत पर लगाए गए ट्रंप टेरिफ़ के बाद से वह और ज़्यादा टफ़ और डिटरमिन दिख रहे हैं। अभी तो सिर्फ जीएसटी रिफॉर्म आए हैं। अब पीएम मोदी का फोकस एक्सपोर्टर्स के कारोबार पर होने वाले ट्रंप इफ़ेक्ट को कम करने पर है। क्योंकि ट्रंप के 50% टेरिफ़ से कपड़ा, गहने, चमड़ा, फुटवेयर और एग्रो प्रोडक्ट्स के निर्यातक गंभीर चुनौती का सामना कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी उस प्लान पर काम कर रहे हैं कि इन क्षेत्रों में लोगों की नौकरियों की सुरक्षा बनी रहे और निर्यातकों के अपने उत्पादों के लिए नए बाज़ारों को ढूंढने तक उत्पादन जारी रखने में परेशानी ना आए। इसके लिए सरकार ठीक वैसे ही स्टिमुलस पैकेज पर काम कर रही है जैसा कोविड महामारी के समय एमएसएमई सेक्टर के लिए किया गया था। अगर मैं सार बताऊं तो यही कह सकता हूं कि इससे भारत की शानदार अर्थव्यवस्था में पंच रत्न जुड़े हैं:
टैक्स सिस्टम कहीं अधिक सिंपल हुआ।
भारत के नागरिकों की क्वालिटी ऑफ़ लाइफ़ और बढ़ेगी।
कंजमशन और ग्रोथ दोनों को नया बूस्टर मिलेगा।
ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस से निवेश और नौकरी को बल मिलेगा।
विकसित भारत के लिए कोऑपरेटिव फ़ेडरलिज़्म यानी राज्यों और केंद्र की साझेदारी और मज़बूत होगी।
यानी इनकम में भी बचत और खर्च में भी बचत। अब यह डबल धमाका नहीं है तो क्या है? एक्सपर्ट मानते हैं कि चीज़ों के सस्ता होने से भारत में उन सामानों की खपत बढ़ेगी। लोगों के पास पैसा बचेगा तो वह खरीदारी करेंगे जिससे बाज़ार में लिक्विडिटी बनी रहेगी। यानी ट्रंप टेरिफ़ का असर थोड़ा कम होगा। हालांकि इसका असर बहुत सीमित ही होगा।
भारत का उद्योग: ट्रंप के टेरिफ़ के बावजूद मज़बूत रुख
इसमें कोई दो राय नहीं कि ट्रंप का 50% अनैतिक टेरिफ़ भारत के कई सेक्टर्स पर असर डालेगा। इसमें मुख्य रूप से टेक्सटाइल्स एंड गारमेंट्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, लेदर एंड फुटवेयर और एग्रीकल्चर एंड डेयरी इंडस्ट्री शामिल है। 2024-25 के अनुसार यह सेक्टर सीधे 45 मिलियन यानी 4.5 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है। इसी तरह आईबीईएफ के अनुसार जेम्स एंड ज्वेलरी का सेक्टर 50 लाख लोगों को रोज़गार देता है। लेदर एंड फुटवेयर इंडस्ट्री से करीब 45 लाख लोग जुड़े हैं, जिनमें 40% महिलाएं हैं। हमने वाराणसी, मुंबई और सूरत में बनारसी साड़ी और ज्वेलरी इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से यह समझने की कोशिश की कि ट्रंप टेरिफ़ का कितना असर फ़िलहाल दिख रहा है। वाराणसी में बनारसी साड़ी के कारोबार से जुड़े लोग बता रहे हैं कि ट्रंप टेरिफ़ की वजह से कारोबार 30% घटा है।
"अभी देखिए, बनारसी साड़ी उद्योग अभी मंदी के दौर से गुज़र रहा है। उसमें ये टेरिफ़ आ गया है। इससे बाज़ार और नीचे चला गया। हम जो ऑर्डर थे वह भी रुक गए हैं और आगे भी अभी कुछ संभावनाएं नहीं दिख रही हैं और कस्टमर को बहुत महंगा पड़ जाएगा।"
जाहिर है, 50% के अनैतिक टेरिफ़ ने इन इंडस्ट्रीज़ पर असर तो डाला है। ज्वेलरी कारोबार भी ट्रंप टेरिफ़ की वजह से धीमा हुआ बताया जा रहा है। सूरत और मुंबई में ज्वेलरी कारोबार पर कितना असर है इसे भी सुनिए।
"डायमंड इंडस्ट्री पर शॉर्ट टाइम के लिए थोड़ी इफ़ेक्ट हो लंबे टाइम वो ख़त्म हो जाएगी क्योंकि वो डायमंड है, पॉलिश डायमंड जो 25% लगा या फिर उसमें और एडिशनल 25% लगा तो शॉर्ट टाइम दिखेगा उसका थोड़ा असर बाकी मेरे हिसाब से ये चार-छह महीने में ये जो भी जितना है उतना ही चलेगा उसमें कोई दो राय नहीं है।"
"बिल्कुल, ज्वेलरी ट्रेड पे बहुत बड़ा असर है क्योंकि जो रेट है, वो रेट बहुत बढ़ गया है और यहां तक बढ़ गया है कि कारीगर लोगों के व्यापारियों के पास काम नहीं है और काम नहीं है तो कारीगरों को काम नहीं दे सकते। उससे रेट बढ़ रहा है। कारीगर छोड़-छोड़ के जा रहे हैं।"
लेकिन सच यह है कि ना मोदी शांत बैठे हैं और ना ही इस कारोबार से जुड़े लोग। इंडस्ट्री टेरिफ़ से सीधे-सीधे प्रभावित है तो भी टेरिफ़ के आगे सरेंडर नहीं कर रही है बल्कि ट्रंप के टेरिफ़ का तोड़ निकाल रही है। जैसे फुटवेयर इंडस्ट्री से जुड़े लोग कह रहे हैं कि वह दूसरे मार्केट तलाश लेंगे। इसमें रूस की मार्केट है, आसियान देश हैं, साउथ अमेरिका के देशों की मार्केट है। इंडस्ट्री से जुड़े लोग कह रहे हैं कि अमेरिका को यह समझना चाहिए कि फुटवेयर की बड़ी मार्केट है। कोई भी टेरिफ़ वाली ब्लैकमेलिंग के आगे सरेंडर नहीं करेगा। तो वहीं जेम्स एंड ज्वेलरी डोमेस्टिक काउंसिल के चेयरमैन भी यही बात कह रहे हैं। वो भरोसा जता रहे हैं कि 3 से 6 महीने में अमेरिका के टेरिफ़ का असर ख़त्म हो जाएगा। भारत दूसरे बाज़ार तलाश लेगा।
"However, we as manufacturers and wholesalers have... have made alternate routes by increasing our marketing all throughout the all the states in in in India. In in UAE. Ah we are doing it in UAE and Saudi Qatar and other markets also which we are looking at the FAP which is happened between UK and Australia is affecting in a positive way to the Gem and Jewellery industry and we are hopeful in the coming three to six months we will be able to nullify the effect of the US."
मोदी की नीति: 'ना झुकेंगे, ना रुकेंगे'
सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा। मैं देश नहीं रुकने दूंगा। मैं देश नहीं झुकने दूंगा।
चाहे आतंकवाद के ख़िलाफ़ ऑपरेशन सिंदूर रहा हो या ट्रंप के अनैतिक टेरिफ़ के ख़िलाफ़ अडिग रहना। दोनों में मोदी की नीति में रत्ती भर भी बदलाव नहीं हुआ। यहां तक कि जिस दौर में अमेरिका के साथ भारत के संबंध लड़खड़ाते हुए दिखते हैं, उस दौर में भी एससीओ के मंच पर पीएम मोदी आतंकवाद से लेकर चीन के बीआरआई तक पर अपनी स्पष्ट और दो टूक राय रखते हैं। हमारा मानना है कि कनेक्टिविटी के हर प्रयास से संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए।
मोदी की यही स्पष्टता उन पर और उनकी नीति पर दुनिया के भरोसे को बढ़ाती है। ब्रिटेन के साथ इसी साल ऐतिहासिक फ्री ट्रेड डील हो चुकी है। यह डील माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज यानी एमएसएमईएस और सेवा क्षेत्रों को मज़बूत करेगी। तो वहीं पिछले दिनों सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग ने भारत की प्रगति की तारीफ़ करते हुए सेमीकंडक्टर डिज़ाइन निर्माण और एक सप्लाई चेन को मज़बूत करने के लिए समझौते किए हैं।
मैंने आपसे पहले भी कहा था कि मोदी के लिए दुनिया का मतलब अमेरिका नहीं है। तभी ना यह हुआ कि ट्रंप पर भरोसा करने से यूरोप तक हिल रहा है। वो मोदी के साथ अलाइन हो रहा है। भारत के साथ चलने को तैयार है। जर्मनी के विदेश मंत्री तो बोल कर गए, "आप रूस से संबंध रखिए, अपने को कोई दिक्कत नहीं, बॉस।" क्योंकि सब एक ही तरह से सोचें, ऐसा हो नहीं सकता। बताइए, यह जर्मनी कह रहा है और ट्रंप, ट्रंप रूस का नाम लेकर भारत को धमकाना चाहते हैं। ये कतई नहीं होगा, मोदी के राज में तो नहीं होगा। अलास्का में पुतिन ट्रंप के सामने बोल चुके हैं कि जब से वो आए हैं तब से अमेरिका-रूस के बीच व्यापार 20% बढ़ा है। क्यों नहीं बोले ट्रंप कि लगाता हूं खुद पर टेरिफ़? भारत पर दुनिया को ज्ञान दे रहे हैं। लेकिन दुनिया समझ चुकी है, आज का दौर भारत का है। यूरोप मोदी पर भरोसा कर रहा है, पुतिन-मोदी की दोस्ती किसी से छुपी नहीं है, जिनपिंग चाहते हैं कि एलीफेंट एंड ड्रैगन डांस करें, ग्लोबल साउथ के देश यहां तक कि अफ्रीकन कंट्रीज़ का भरोसा मोदी पर है। एक चेहरा है जो ग्लोबल साउथ का भरोसेमंद नेतृत्व कर रहा है, और वो नाम है नरेंद्र मोदी का, वो पहचान है भारत की।
ट्रंप की औपनिवेशिक मानसिकता और नया भारत
एलीफेंट, ड्रैगन और बियर की इस तड़ी के दम का अंदाज़ा दुनिया को है। बात सिर्फ़ ट्रेड डील तक की नहीं है, बल्कि कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर भारत-चीन के संबंध सहज होते हुए आगे बढ़े तो फिर इंडो-पैसिफिक में कई अहम रणनीतिक साझेदारियों पर भी संकट हो सकता है। हालांकि पुतिन के साथ पीएम मोदी की केमिस्ट्री वैसी ही दिखी है जैसी कि एक समय में ट्रंप के साथ दिखी थी। रही बात जिनपिंग और चीन की तो इसमें ज़ाहिर सी बात है भरोसा बनते-बनते बनेगा। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बदलती जियोपॉलिटिक्स में इस तस्वीर ने मोदी और भारत की कूटनीति को एक अलग ही लेवल पर पहुंचा दिया है। एक्सपर्ट तो यहां तक कह रहे हैं कि भारत-रूस और चीन के गठबंधन से कम से कम 21वीं सदी में तो अमेरिका पार नहीं पा सकेगा।
ग्लोबल साउथ को अमेरिका और यूरोप क्या कहते रहे हैं, मालूम है ना? थर्ड वर्ल्ड। ट्रंप कहते हैं कि अगर मैंने टेरिफ़ नहीं लाता होता तो हमारी हालत भी थर्ड वर्ल्ड वाली हो जाती। आज के दौर में थर्ड वर्ल्ड जैसे शब्द को काफ़ी हद तक डेरोगेटरी माना जाता है। यह कॉलोनियल माइंडसेट है पश्चिम का जिससे आज तक वो बाहर नहीं आ सका। ट्रंप भी इसी कॉलोनियल माइंडसेट के शिकार हैं। ग्लोबल साउथ अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के लिए वो जगह रही है जहां उन्होंने या तो राज किया या सरकारों को डिक्टेट किया, उन पर दबाव बनाया और अपने मन मुताबिक चलाया। लेकिन 21वीं सदी में अब ग्लोबल साउथ अपने आत्मसम्मान और समानता के अधिकार की बात कर रहा है। पीएम मोदी यूएन से लेकर हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ग्लोबल साउथ के साथ भेदभाव वाली किसी भी मानसिकता के ख़िलाफ़ बोलते रहे हैं। ज़ाहिर है, आज के दौर में निशाने पर सीधे अमेरिका होता है। क्योंकि ग्लोबल साउथ में अस्थिरता ज़्यादातर खुराफातों में उसका हाथ बताया जाता रहा है। भारत को आज के दौर में मोदी ने वो सेंटर बना दिया है जिधर ग्लोबल साउथ बड़ी उम्मीद से देख रहा है। ग्लोबल साउथ के देश जानते हैं कि आज जियोपॉलिटिक्स में मोदी नीति परस्पर विश्वास और विकास की है, विस्तारवाद की नहीं।
क्या वाक़ई भारत को खोने की चिंता ने ट्रंप का हाफ हृदय परिवर्तन कर दिया है या फिर तियांजिन में बनी तगड़ी ने ट्रंप को अपनी भूल का एहसास करा दिया। या कि ट्रंप के 180 डिग्री टर्न वाले बयानों के जैसा ही ट्रंप का नया बयान है। जो भी है पर एक मनोदशा तो है। एक पहलू तो है कि भारत के रुख बदलने का मतलब क्या हो सकता है। नया भारत क्या है और मोदी नीति क्या है? इस बात को यूरोप बेहतर समझ रहा है। उसके नेता जानते हैं कि दुनिया में शांति, सुरक्षा और परस्पर समृद्धि की गारंटी अगर किसी के पास है तो मोदी और भारत के पास है। यही वजह है कि असहमतियों के बावजूद उन्होंने भारत की तरफ खुली खिड़की को बंद नहीं किया है। शांति और स्थिरता के दावे करना और उस पर नोबेल पुरस्कार हासिल करने के सपने देखना एक बात, लेकिन उसे ईमानदारी और पूरी प्रतिबद्धता से निभाना दूसरी बात है। बीते 11 वर्षों में मोदी नीति या मोदी डॉक्ट्रिन विश्वास और वासुदेव कुटुंबकम के पवित्र सूत्र से ही तैयार हुआ है, जिसने दुनिया को बताया है कि मित्रता निभाना और सत्य के साथ खड़े रहना ही भारत की पहचान है। मोदी पुतिन के साथ खड़े रहे तब भी जब अमेरिका में बाइडन का दौर था। अब भी जब अमेरिका में ट्रंप का दौर है। भारत की अपनी नीति है, अपने नियम हैं, अपनी पहचान है और अपने संकल्प। और यह संकल्प 2047 के भारत के हैं, उससे आगे के हैं। तब तक अमेरिका हो या ट्रंप या चाहे कोई और, भारत की राह में रोड़ा बनने की इजाज़त किसी को भी नहीं। मोदी नीति ने यह दुनिया को बता दिया है।
Source news channel: TIMESNOWNAVBHARAT
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