मोदी की कूटनीति: (Modi's Diplomacy: Free Trade Agreements)

  1. ट्रंप को लगा दोहरा झटका: नोबेल पुरस्कार और भारत से बढ़ती दूरी
  2. ट्रंप के तेवर नरम पड़े: भारत की बढ़ती शक्ति के आगे बेबस अमेरिका
  3. ट्रंप की हर चाल हुई नाकाम: पीएम मोदी ने बदला ग्लोबल ऑर्डर
  4. ट्रंप का पछतावा और बदलती वैश्विक व्यवस्था
  5. व्हाइट हाउस में ट्रंप का 'डिनर' और एलन मस्क का बायकॉट
  6. देश की राजनीति में कांग्रेस का नया स्टंट: आरक्षण और बैलेट पेपर

प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक कूटनीति: फ्री ट्रेड एग्रीमेंट से लेकर यूक्रेन युद्ध तक

इसको और बेहतर ढंग से समझने के लिए, नीचे दिए गए वीडियो को देखना न भूलें।


नेताओं से बातचीत को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि यूरोपियन काउंसिल के प्रेसिडेंट एंटोनियो कोस्टा और यूरोपियन यूनियन की चीफ उर्सुला वन डेर नेयन के साथ अच्छी बातचीत हुई है। हमने भारत-यूरोपियन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को जल्द पूरा करने और आईएमईसी यानी इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर को चालू करने की प्रतिबद्धता पर सहमति जता दी। अब आप सोचिए, कहां डोनल्ड ट्रंप सोच रहे थे कि अमेरिका का बाज़ार न मिला तो भारत का क्या ही होगा? और हमने आपको बताया था कि नरेंद्र मोदी ने उसी वक़्त यूरोपीय देशों के रास्ते तलाशना शुरू कर दिया था कि कहां-कहां भारत का सामान जा सकता है। अब यूरोपीय देशों के साथ भी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट हो गया है। ब्रिटेन से हो ही गया है। भाई, भारत के लिए इस वक़्त जो कहते हैं ना, यह समय है भारत का, वह दिख रहा है और ऊपर से यह जीएसटी रिफॉर्म।

पीएम मोदी ने यूरोपियन यूनियन के इन दोनों नेताओं को भारत-ईयू समिट के लिए आने का न्योता भी दिया। पीएम मोदी की यूरोपियन यूनियन के बड़े नेताओं के साथ यह बातचीत ऐसे वक़्त में हुई जब 11 सितंबर को यूरोपियन यूनियन के ट्रेड कमिश्नर भारत आने वाले हैं। उनके इस दौरे में भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर मोहर लगाने को लेकर चर्चा होने की उम्मीद है। इसके अलावा यूके, यूएई, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश हैं जिनके साथ भारत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर चुका है। और कई देश और हैं जो भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट करना चाहते हैं। तो यह दिख रहा है ट्रंप को कि भाई मेरी तरह तो कोई पैर पटक नहीं रहा, सब तो लाइन लगा दिए भारत के साथ दोस्ती के लिए। तो भाई अब निराश होकर कह रहा है कि "चला गया भारत मेरा दोस्त"।


ट्रंप को लगा दोहरा झटका: नोबेल पुरस्कार और भारत से बढ़ती दूरी

ट्रंप को एक झटका नोबेल पुरस्कार पर भी लग रहा है। ट्रंप चाहते थे कि वो यूक्रेन युद्ध रुकवाकर नोबेल शांति पुरस्कार ले लें, लेकिन ट्रंप जो सोच रहे थे उसका उल्टा होता दिख रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने की जो कोशिशें हो रही हैं उनमें कोई ट्रंप को क्रेडिट दे ही नहीं रहा। उलटे चाहे यूक्रेन हो, चाहे रूस हो, चाहे यूरोप हो, सब कह रहे हैं कि यूक्रेन युद्ध रोकने में भारत और नरेंद्र मोदी का रोल ज़्यादा अहम दिख रहा है। पीएम मोदी से फोन पर बातचीत के बाद यूरोपियन काउंसिल के प्रेसिडेंट ने कह दिया कि रूस को युद्ध खत्म करने और शांति की राह पर लाने के लिए भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। वो यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के साथ भारत के निरंतर सहयोग का स्वागत करते हैं, क्योंकि यह युद्ध ग्लोबल सिक्योरिटी और आर्थिक स्थिरता के लिए बड़ी चुनौती है और पूरी दुनिया के लिए बड़ा ख़तरा है।

आप सोचिए, बॉस, वो ट्रंप का नाम नहीं ले रहे हैं, कह रहे हैं कि भारत यह सब करके दिखा रहा है। यूक्रेन युद्ध को रुकवाने में भारत को अहम किरदार माना जा रहा है। और यह ट्रंप के लिए सबसे बड़ा झटका नहीं है, तो क्या है? जो भाई एकदम इधर से उधर बुलI रहा था कि भाई कोई दे दो, कोई दे दो, नोबेल पुरस्कार दे दो। लो, युद्ध तो रुका नहीं। पुतिन मोदी के साथ कार में जा रहे हैं, कह रहे हैं, "ब्रीफ किया है कि भाई क्या हुआ था ट्रंप से बातचीत?" बार-बार वो फोन कर रहे हैं। बार-बार ज़ेलेंस्की फोन कर रहा है। उधर से यूरोपियन यूनियन कह रहा है कि भाई मोदी और इंडिया ही अहम दिख रहे हैं जो युद्ध में कुछ करवा सकते हैं, रुकवा सकते हैं। सोचिए, ट्रंप को भाई लो बीपी न हो जाए। आप यह भी देखिए कि यूरोपियन यूनियन के प्रेसिडेंट का यह बयान पेरिस से आया है। जहां यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए सारे नेता बात कर रहे थे, उसी मीटिंग के बीच में यूरोपियन यूनियन की प्रेसिडेंट ने पीएम मोदी को फोन कर दिया। 

सिर्फ यूरोपियन यूनियन के देश ही नहीं बल्कि खुद यूक्रेन और रूस यह मान चुके हैं कि मोदी ही वो नेता हैं जो इस युद्ध को रोकने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। अमेरिका यह नैरेटिव बना रहा था कि यूक्रेन युद्ध असल में पुतिन का नहीं, मोदी का युद्ध है, भारत का युद्ध है। लेकिन पुतिन ने कह दिया था कि भारत तो युद्ध रोकने का काम कर रहा है। हाल ही में पुतिन ने यह कहा कि वो यूक्रेन युद्ध का समाधान निकालने में भारत और चीन की भूमिका और उनके प्रयासों की प्रशंसा करते हैं।


ट्रंप के तेवर नरम पड़े: भारत की बढ़ती शक्ति के आगे बेबस अमेरिका

ट्रंप के तेवर इसलिए भी नरम पड़ रहे हैं क्योंकि भारत के साथ पूरी दुनिया खड़ी होती जा रही है। भाई को लग गया कि ऐसा न हो कि नोबेल कहीं मोदी को न मिल जाए। भारत उस नोबेल के चक्कर में नहीं है भाई, भारत ग्लोबल की बात कर रहा है, नोबेल की बात नहीं कर रहा है। खाली ट्रंप ने भारत की इकॉनमी को "डेड" कहा, भारत पर टेरिफ लगाया, खूब बयानबाजी की। इस पर पुतिन ने ट्रंप को बुरी तरह से हड़का दिया। पुतिन ने दो टूक कह दिया कि कोई भी देश भारत के साथ ऐसे बात नहीं कर सकता जैसे ट्रंप टेरिफ को लेकर करना चाह रहे हैं। पुतिन ने आगे कहा कि ट्रंप भारत को टेरिफ के नाम पर धमकाना बंद कर दें क्योंकि भारत उनकी धमकी से डरने वाला नहीं है। पुतिन ने यह भी कहा कि भारत और चीन दुनिया की शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाएं हैं और दोनों देशों की आबादी करीब 150 करोड़ है। दुनिया का कोई भी देश इन्हें सज़ा देने की बात नहीं कर सकता। यही नहीं, पुतिन ने यह भी कहा कि टेरिफ को लेकर ट्रंप की बयानबाजी अमेरिका की पुरानी सोच को दिखाती है। ट्रंप को समझना होगा कि कॉलोनियल एरा अब खत्म हो चुका है और ट्रंप अपने पार्टनर्स के साथ बात करते समय उस दौर के शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। आगे पुतिन ट्रंप को यह भी नसीहत देते दिखे कि वो टेरिफ और जुर्माने का दबाव डालकर भारत जैसे देशों को झुकाने की कोशिश न करें, क्योंकि मुश्किल इतिहास का दौर देख चुके देश के नेतृत्व को कमज़ोर समझने की कोशिश करना बड़ी भूल है। इसीलिए भाई ने लिखा ना कि भारत और रूस दोनों गए, क्योंकि भारत तो सुन नहीं रहा अमेरिका की और रूस भारत की तरफ से सुना दे रहा है कि "क्या बोल रहे हो जी तुम? भारत यह सब नहीं सुनेगा।"

जब से ट्रंप ने भारत पर टेरिफ लगाया है, तब से ही अमेरिका में कई एक्सपर्ट ट्रंप को चेता भी रहे हैं कि "भाई तुम बहुत बड़ी ग़लती कर रहे हो भारत से।" तब ट्रंप ने किसी की तो सुनी नहीं। उनको तो सनक थी कि भाई मैंने बोल दिया ऐसा होगा कैसे? आदत नहीं है ना, ज़्यादातर देश ऐसे ही लाइन पर थे। वो तो भारत खड़ा हो गया कि "अच्छा, ऐसा होगा नहीं चलेगा।" तब भाई को धीरे-धीरे समझ में आया कि अरे यार, यह तो पूरा गेम पलट दिया नरेंद्र मोदी और भारत ने। उनके करीबी भारत को हर दिन टारगेट करने में लगे हुए थे। जब रिश्ते बहुत बिगड़ गए तब ट्रंप को अब समझ में आया कि यह तो यू-टर्न मारने लायक भी रास्ता नहीं दिख रहा है। बहुत आगे जाकर एकदम एक्सप्रेसवे से मुड़ के आना पड़ेगा। अब अमेरिका में कई एक्सपर्ट कह रहे हैं कि ट्रंप ने बहुत देर कर दी। एक्सपर्ट का मानना है कि ट्रंप अब भारत से रिश्ते सुधार भी लें, लेकिन भारत का विश्वास खो चुके हैं। और इसीलिए ट्रंप ने भी लिखा है। उनको भी अंदर ही अंदर तो समझ में आ रहा है ना कि मैंने तो जैसे कटप्पा ने बाहुबली को पीछे से मार दिया था, वही हाल कर दिया है, एकदम छुरा मार दिया। तो भारत दोस्ती कर लेगा, ठीक है भाई, दुनिया में ग्लोबल ऑर्डर में ना कोई परमानेंट दोस्त है, ना कोई परमानेंट दुश्मन है। भारत अपना हित देख रहा है, लेकिन जो एक ट्रस्ट होता है उसमें तुमने चाकू मार दिया। उस विश्वास को अब अमेरिका फिर हासिल नहीं कर पाएगा।

आज ही अमेरिका के एक बड़े अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने ट्रंप की नीतियों पर खूब सुनाया उनको। उसने लिखा कि टेरिफ और कड़वी बयानबाजी की वजह से जो बड़े और अहम देश हैं, वो अमेरिका से दूर जा रहे हैं। यह आधुनिक विदेश नीति का सबसे बड़ा आत्मघाती गोल हो सकता है, "सेल्फ गोल"। वाशिंगटन पोस्ट ने कहा कि इस हफ़्ते दुनिया में जो हुआ वो ट्रंप की विदेश नीति का फेलियर है। भारत कभी अमेरिका के साथ हुआ करता था, अब वो अमेरिका से दूर जा रहा है। अख़बार ने कहा कि ट्रंप को छोटे देशों को डराकर अपनी बात मनवाने में मज़ा आता है, लेकिन जो बड़े और लोकतांत्रिक देश हैं, जिनका अपना राष्ट्रवाद है, अपना प्राइड है, उससे डील करना ट्रंप को पसंद नहीं है। और भारत इस दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बॉस। राहुल गांधी भले विदेश में जाकर कह दें कि यहां कुछ नहीं बचा, उससे नहीं ना होगा। दुनिया मानती है, बॉस, कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। वाशिंगटन पोस्ट लिख रहा है कि भारत का अपना राष्ट्रवाद है, अपना प्राइड है और नरेंद्र मोदी उस प्राइड को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं कि कोई भी आके कोहनी में मार के चला जाएगा, ऐसा नहीं चलेगा, बॉस। हमने आपको दो दिन पहले ही बताया था कि भारत पर ट्रंप को यू-टर्न लेना ही पड़ेगा। आज लें, 2 महीने बाद लें, 6 महीने बाद लें, यह भाई रास्ता बदलेगा।


ट्रंप की हर चाल हुई नाकाम: पीएम मोदी ने बदला ग्लोबल ऑर्डर

जिस मक़सद से ट्रंप भारत से भिड़ रहे थे, वो पूरा हुआ ही नहीं। पीएम मोदी ने ट्रंप की हर चाल फेल कर दी। दूसरी तरफ़ पीएम मोदी ने ट्रंप को ऐसा ट्रेलर दिखाया कि ट्रंप अब सरेंडर मोड में हैं। दो दिन पहले ही पीएम मोदी ने जीएसटी रिफॉर्म को लेकर बड़ा फ़ैसला लागू कर दिया। यह भारत की इकॉनमी को "डेड" बताने वाले ट्रंप को सीधा मैसेज था कि भारत खुद की रफ़्तार बढ़ाने में लगा है, वो किसी का मोहताज नहीं। "तुम मत सोचो कि हम तुम्हारे वो दोस्त हैं कि तुम बाइक पर बैठाओगे तभी ट्यूशन जाएंगे। अरे भैया, तुम बैठे रहो, तो हम हम अपना अपनी बाइक बना लेंगे और उससे चले जाएंगे", वाला हिसाब है भारत का। पीएम मोदी ने जिस तरह से भारत की इकॉनमी को रॉकेट बनाया हुआ है, जीडीपी ग्रोथ को करीब 8% तक पहुंचा के रखा हुआ है, उससे भी अमेरिका को यह मैसेज चला गया कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था को टेरिफ के दम पर झुकाया नहीं जा सकता। ट्रंप ने भारत पर टेरिफ लगाया तो पीएम मोदी ने साफ़ मैसेज दे दिया था कि जो नुक़सान होगा, देख लेंगे, बॉस, लेकिन अमेरिका के आगे नहीं झुकेंगे। क्योंकि एक बार झुकिएगा ना तो यह फिर करेगा। और इन लोगों को लगता है कि भारत गुलामी सहा है इतने साल तो जो बोलेंगे सो करेगा। अरे जाओ, गुलामी सह ली, सह ली, अब ना सहते हम।

ट्रंप ने भारत पर टेरिफ लगाया तो पीएम मोदी इससे डर नहीं गए, ना पैनिक मोड में आए, बल्कि पीएम मोदी ने भारत के प्रोडक्ट्स के लिए दूसरे बाज़ार की तलाश तेज़ कर दी। ट्रंप अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर भारत को अलग करने की कोशिश में थे। यूक्रेन युद्ध का दोष भारत पर लगाने लगे, यूरोप को भारत के ख़िलाफ़ भड़का रहे, लेकिन पीएम मोदी ने पूरा गेम पलट दिया। यूरोप तक भारत के समर्थन में आते हैं। मोदी सरकार के मंत्री अलग-अलग जाकर विदेशी चैनलों पे बैठ के बताने लगे कि "ये तो झूठा है इसे ऐसे बोल रहा है। ये देखो ना खुद नहीं खरीदता है।" यूरोप नहीं खरीद रहा है रूस से तेल। पूरा प्रोपेगेंडा इनका उड़ा दिया, धज्जियां उड़ा दी। इतना ही नहीं, भारत को अलग-थलग करने में लगे ट्रंप को पीएम मोदी ने क्वाड में अलग-थलग कर दिया। जापान और ऑस्ट्रेलिया भी ट्रंप की टेरिफ वॉर के ख़िलाफ़ भारत के साथ खड़े दिखने लगे। यानी ट्रंप ने हर तड़म करके देख ली लेकिन वो मोदी को झुका नहीं पाए, भारत को दबा नहीं पाए। जब अमेरिका को यह लग गया कि भाई मोदी के रहते तो भारत को का कुछ बिगाड़ना बड़ा मुश्किल है, तो अब ट्रंप जो हैं वो टोन डाउन हो रहे हैं। और सिर्फ टोन डाउन नहीं हो रहे हैं, वो दिलजले आशिक टाइप बिहेव कर रहे हैं कि "भाई मेरा दोस्त तो चला गया, चला गया मेरा दोस्त रूस और भारत।" ऐसा सुबह 6:30 बजे उठकर लिख रहे हैं। सोचिए, रात में लग रहा है सपने में देखे होंगे यही फोटो।

डॉनल्ड ट्रंप के नए बयान पर आज विदेश मंत्रालय से भी सवाल किया गया कि भाई डॉनल्ड ट्रंप तो कह रहे हैं भारत चला गया। विदेश मंत्रालय ने क्या कहा, पता है? नो कमेंट। और ट्रंप के दर्द पर और नमक छिड़क दिया। सुनिए एक बार।

"Regarding the post, I have no comments to offer on this post at this."

"ये आपका सवाल भी इस पे था तो इस पे हमारे पास अभी टिप्पणी करने के लिए कुछ नहीं है।"

यानी जैसे दोस्ती में नहीं होता है कि आदमी सोचता है कि मैसेज भेजूंगा कुछ तो भाई रिप्लाई लिखेगा। कोने काट दिए। मैसेज में रीड का साइन आ गया, नीला-नीला टिक, लेकिन रिप्लाई ये नहीं गया भारत का, नो कमेंट। अब और उछलो।


ट्रंप का पछतावा और बदलती वैश्विक व्यवस्था

ट्रंप के बयान पर विदेश मंत्रालय ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। कूटनीति की अपनी कुछ मजबूरियां भी हो सकती हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर लोग ट्रंप के नए बयान को लेकर बहुत सी बातें कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि ट्रंप ने भारत को खो दिया तो क्या हुआ? सुपर पावर, फास्टेस्ट ग्रोइंग... पाकिस्तान तो है ना तुम्हारे साथ। कोई कह रहा है कि ट्रंप ने खुद ही भारत से दुश्मनी ले ली। भारत को दूर कर दिया। भारत को खोने का ग़म मना रहा है। लोग कह रहे हैं कि ट्रंप ने तो भारत को उसी दिन खो दिया था जब वो वाइट हाउस में मुनीर को लंच करवा रहे थे। खुद ट्रंप ने भारत जैसे मज़बूत पार्टनर की जगह कंगाल पाकिस्तान को चुना तो फिर अब पांव पटकने से क्या फ़ायदा? लोग यह भी कह रहे हैं कि रूस तो पहले भी अमेरिका के साथ नहीं था। तो रूस को चीन के हाथों खोने की बात कहां से आ गई? रूस और चीन तो पहले से ही साथ थे। लेकिन अकेले भारत के बारे में लिखने में लग रहा होगा कि ज़्यादा एकदम डायरेक्ट हो जाएगा कि "अब मैं मरा जा रहा हूं भारत के लिए।" तो भारत और रूस दोनों लिख दिया भाई कि दोनों को खो दिया। अरे रूस कौन सा तुम्हारे लिए एकदम बहुत बिछा जा रहा था?

डॉनल्ड ट्रंप का यह पछतावा डिप्लोमेटिक भी है और पर्सनल भी क्योंकि ट्रंप ने भारत से रिश्ते तो बिगाड़ लिए, मोदी जैसा दोस्त भी गंवा दिया। ट्रंप को इस बात का एहसास तब हो गया होगा जब उन्होंने मोदी और पुतिन का याराना देखा होगा। मोदी-पुतिन-जिनपिंग की इस तड़ी को बार-बार देखकर ट्रंप को यही लग रहा होगा कि इन तस्वीरों में जिनपिंग की जगह वो भी हो सकते थे। इसलिए ट्रंप ऐसा पोस्ट कर रहे हैं जिसमें उनका दर्द दिख रहा है। डॉनल्ड ट्रंप को इस बात की भी पीड़ा हो रही होगी। इधर तो पीएम मोदी जिनपिंग से मिल रहे हैं, पुतिन के साथ कार में घूम रहे हैं, लेकिन मोदी ट्रंप का फोन ही नहीं उठा रहे। मोदी की नाराज़गी कितनी भारी पड़ सकती है शायद अमेरिकी राष्ट्रपति को अब धीरे-धीरे समझ में आ रहा है। यहां भारत में कुछ लोग थे कि मोदी जी गए उधर जाकर हंस रहे हैं, क्या हो रहा है? भाई वही हंसी देख के उधर आग लगी हुई है। ट्रंप ने सोचा था कि वो नरेंद्र मोदी से भिड़ जाएंगे तो फिर अमेरिका के सामने भारत को कौन पूछेगा, लेकिन यहां तो पूरा ग्लोबल ऑर्डर ही नरेंद्र मोदी ने बदल दिया। कोई देश ऐसा नहीं जो भारत से दोस्ती न करना चाह रहा हो। तो यहां यूरोपीय यूनियन जो है वह फ्री ट्रेड तक पहुंच गई यह बात। दूसरी तरफ़ भारत ने इंडो-पैसिफिक रीजन में स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप मज़बूत करने का प्लान एक्टिवेट कर दिया है। जिसको लेकर पहले पीएम मोदी ने सिंगापुर के पीएम से मुलाक़ात की जो भारत के दौरे पर आए हैं। पेलगाम आतंकी हमले पर भारत के साथ खड़े होने के लिए उनका आभार जताया और दोनों देशों के बीच पांच बड़ी डील भी हुई और फिर एनएसए अजीत डोभाल की भी सिंगापुर के पीएम के साथ बैठक हुई। दोनों ने हाल में हुई घटनाओं के बीच इंडो-पैसिफिक रीजन में सुरक्षित ट्रेड के उपायों पर चर्चा भी की।

अब यह समझना भी ज़रूरी है कि ट्रंप के टेरिफ वॉर के बीच सिंगापुर के पीएम को भारत का जो यह भारत दौरा है उसको इतना अहम क्यों माना जा रहा है? दरअसल, भारत दुनिया की ट्रेड लाइफ लाइन मानी जाने वाली मलक्का स्टेट में पेट्रोलिंग की तैयारी पूरी कर चुका है जो सिंगापुर के पास से गुजरती है। मलक्का स्टेट वो जगह है जहां से दुनिया का करीब 40% कच्चा तेल और कारगो शिप गुजरते हैं। मलक्का स्टेट हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ती है। सिंगापुर ने मलक्का स्टेट को लेकर भारत की पहल का खुलकर समर्थन किया है और सिंगापुर ने यह तक कह दिया है कि मलक्का स्टेट में भारत की मौजूदगी पूरे इंडो-पैसिफिक रीजन को सुरक्षित रखेगी। सिंगापुर के इस बयान को भारत की बड़ी स्ट्रैटेजी जीत भी माना जा रहा है।

नरेंद्र मोदी तो बाकी देशों से दोस्ती मज़बूत करने में लगे हैं, उधर ट्रंप कैसे अपने पुराने और भरोसेमंद दोस्तों से अलग-थलग पढ़ते जा रहे हैं, उसकी झलक वाइट हाउस में हुए डिनर में भी दिखी।


व्हाइट हाउस में ट्रंप का 'डिनर' और एलन मस्क का बायकॉट

ट्रंप ने वाइट हाउस में टॉप टेक्नोलॉजी कंपनीज़ के सीईओ को डिनर पर बुलाया। लेकिन इनमें एक बड़ा नाम ग़ायब था। कभी ट्रंप के बेहद करीबी माने जाने वाले और राष्ट्रपति पद के चुनाव में ट्रंप के लिए खुलकर कैंपेन करने वाले, पानी की तरह पैसा बहाने वाले एलन मस्क इस डिनर से नदारद थे। ट्रंप के डिनर में मेटा के मार्क ज़करबर्ग, माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स और सीईओ सत्य नडेला, एप्पल के टीम कुक और ओपन एआई के सैम ऑल्टमैन जैसे दिग्गज सीईओ शामिल हुए। लेकिन मस्क भाई साहब वहां नहीं गए। मस्क नहीं पहुंचे तो इस पर चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया कि उन्हें ट्रंप ने न्योता ही नहीं दिया क्या? जिसके बाद खुद एलन मस्क ने पहले ही कह दिया था कि उन्हें न्योता मिला है लेकिन वो नहीं जाएंगे। क्योंकि मस्क भी अब शायद समझ चुके हैं कि ट्रंप को दोस्ती नहीं बल्कि अपनी शर्तों पर होने वाली बिज़नेस डील के रिलेशन को लेकर ही उनका ध्यान रहता है। टेरिफ वॉर पर अपने ही घर में घेर चुके ट्रंप डिनर में भी यही साबित करने में जुटे रहे कि वो दुनिया के दूसरे देशों से नहीं बल्कि अपने देश की कंपनियों से भी बिज़नेस डील करने में जुटे।

तो भैया, ग्लोबल ऑर्डर तो बदल रहा है लेकिन भारत इस ग्लोबल ऑर्डर में भी मज़बूती से ऊपर जाता दिख रहा है। अपनी शर्तों पर चलता दिख रहा है, प्रगति करता दिख रहा है।


देश की राजनीति में कांग्रेस का नया स्टंट: आरक्षण और बैलेट पेपर

पीएम मोदी देश में बड़े-बड़े रिफॉर्म कर रहे हैं। राहुल गांधी क्या कर रहे हैं? पाठशाला में अगला चैप्टर देखिए विपक्ष का। पीएम मोदी देश में बड़े-बड़े रिफॉर्म कर रहे हैं। राहुल गांधी आरक्षण वाला कौन सा नया एटम बम निकाल कर ले आए? ईवीएम के दिन गए क्या? अब बैलेट पेपर से होगा चुनाव? कांग्रेस ने कहा बड़ा उलटफेर कर दिया। अब देश की राजनीति के बारे में आपको बताता हूं। एक तरफ़ प्रधानमंत्री मोदी देश को बदल डालने वाले धमाके कर रहे हैं। बड़े-बड़े रिफॉर्म आगे बढ़ रहे हैं। जीएसटी में ज़बरदस्त रिफॉर्म हुआ। इकॉनमी को डबल डोज़ की पावर दी। उधर एनडी गठबंधन और कांग्रेस है जो वोटर लिस्ट पर उलझा हुआ था, वोट चोरी का एजेंडा चलाने में जुटा हुआ था, ईवीएम-बैलेट के बैलेट पेपर की बहस में ही उलझा हुआ है। उधर मोदी नए-नए रिफॉर्म कर रहे हैं, इधर कांग्रेस नए-नए स्टंट कर रही है। राहुल गांधी अब तक एटम बम की बात कर रहे थे, फिर हाइड्रोजन बम की बात करने लगे। आज वो आरक्षण वाला नया एटम बम निकाल कर ले आए। उधर एक नया स्टंट बैलेट पेपर से चुनाव करवाने का भी कर दिया। आज इस राजनीतिक घमासान के बारे में आपको बताऊंगा। लेकिन पहले किस तरह से आज देश में हंगामा हुआ है उसका ट्रेलर देखिए।

[संगीत]

"अब इस सरकार के दिन नहीं बचे। दिन गिने जा रहे हैं। उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है सरकार की।"

"कोई बिहार से लेकर के आप पता चले कि अगर कोई बात है तो ज़रूर माफ़ी मांगनी चाहिए।"

पिछले कुछ सालों से कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है। लोकसभा चुनाव से वह नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए संविधान और आरक्षण का मुद्दा बना रहे हैं। अब कांग्रेस ने फिर से आरक्षण के मुद्दे को सुलगाना शुरू किया है। कांग्रेस ने निजी शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण के लिए क़ानून बनाने की मांग की। कांग्रेस कह रही है कि निजी शिक्षण संस्थानों में एससी, एसटी, ओबीसी को आरक्षण देने के लिए सरकार अगले संसद सत्र में बकायदा क़ानून लेकर आए। निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में एससी को 15%, शेड्यूल ट्राइब को 7.5%, ओबीसी वर्ग को 27% का प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। सरकार को आरक्षण से संबंधित आर्टिकल 15 सब-सेक्शन फाइव को लागू करने के लिए संसद सत्र में क़ानून लाना चाहिए। कांग्रेस का कहना है कि संविधान के आर्टिकल 15 सब-सेक्शन फाइव में संशोधन यूपीए सरकार ने किया, लेकिन मोदी सरकार इसे लागू करने के लिए क़ानून नहीं ला रही। मोदी सरकार बहुजनों को न्याय नहीं देना चाहती। एक बार कांग्रेस को सुनिए, फिर आपको इसका सच भी बताता हूं।

"संविधान में संशोधन हुआ था। 15-5 का संशोधन यह सबसे क्रांतिकारी संशोधन हुआ था। किसने करा था? कांग्रेस की यूपीए सरकार ने करा था, मनमोहन सिंह जी की सरकार ने करा था। पर क्या कारण है कि 11 साल हो गए? क्या मोदी जी ने आज तक इसके लागू करने के लिए संसद में कोई नियम पारित करा? कोई लॉ लेकर आए? नहीं लेकर आए। क्योंकि उनकी मंशा..."