ट्रंप नीति का नया दाँव: अमेरिका चाहता है, भारत खाए उसका मक्का!
नमस्कार! विश्व पटल पर इन दिनों जो कूटनीति चल रही है, उसे देखकर लगता है कि अमेरिका को अब भारत की थाली में भी घुसना है! ट्रेड वॉर में अमेरिका और भारत के बीच एक नया टकराव का मुद्दा सामने आया है—अमेरिकी मक्का (U.S. Corn) का आयात!
यूएस कॉमर्स सेक्रेटरी हावर्ड लूटनिक ने दहाड़ लगाई है कि भाई, भारत में 1.4 अरब लोग हैं, लेकिन वह अमेरिका से मक्का का एक दाना (लगभग 25 किलो) भी आयात नहीं करता! उनका कहना है कि ग्लोबल साउथ के इस बाज़ार को खाली नहीं छोड़ा जा सकता।
भारत का 'मास्टरस्ट्रोक': आत्मनिर्भरता और एथेनॉल का खेल
सवाल यह है कि क्या भारत सच में मक्का आयात नहीं करता?
बॉस, यह बात सही है कि भारत में मक्का की उपज दुनिया के औसत से कमजोर है—चार टन प्रति हेक्टेयर से भी कम। बावजूद इसके, भारत हमेशा आत्मनिर्भर रहा है और कभी-कभी निर्यात भी करता है। यह मक्का ज्यादातर मुर्गीपालन, पशु चारा और खाने के काम आता है।
अब असली खेल शुरू हुआ है एथेनॉल ब्लेंडिंग (Ethanol Blending) के कारण। पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने की योजना के चलते भारत को अब भोजन की जरूरतें और एथेनॉल उत्पादन के बीच संतुलन बिठाना पड़ रहा है। जिस तरह गन्ने से चीनी बनाने या उसे एथेनॉल में बदलने का विकल्प है, उसी तरह मक्का की खपत भी एथेनॉल फ़ीडस्टॉक के लिए बढ़ गई है।
लुधियाना के आईसीएआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च के निदेशक एच.एस. जाट कहते हैं कि इस साल बंपर फसल होने की उम्मीद है, इसलिए हमें आयात की कोई ज़रूरत नहीं होगी। हालाँकि, भारत ने हाल के दिनों में मक्का आयात किया है—2024-25 में लगभग एक मिलियन टन (म्यांमार और यूक्रेन से)। यह पिछले साल की तुलना में आठ गुना ज़्यादा है!
जीएम मक्का: भारत की 'लक्ष्मण रेखा'
भारत अमेरिकी मक्का आयात नहीं करता, इसकी बड़ी वजह है कि अमेरिका का अधिकांश मक्का आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified - GM) होता है। भारत ने अभी तक केवल जीएम कपास को ही मंजूरी दी है।
जो आलोचक हैं, वे साफ़ कहते हैं कि अगर यह आयातित जीएम मक्का खाद्य श्रृंखला में आया, तो विषाक्तता और बीमारियों का खतरा ठीक वैसा ही होगा जैसा जीएम फसल उगाने को लेकर होता है। भारत अपनी खाद्य सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं चाहता, यह मोदी नीति है!
अमेरिका क्यों चाहता है मक्का बेचना? कॉरपोरेट खेती का 'साइड-इफ़ेक्ट'
अमेरिका आखिरकार भारत के बाज़ार पर क्यों गिद्ध दृष्टि लगाए हुए है?
पूंजीवादी खेती: अमेरिका में खेती पूंजीवादी (Capitalist) है—बड़ी-बड़ी ज़मीनें, बंपर उत्पादकता (भारत से तीन गुना), और मशीनीकरण। यह खेती मुख्य रूप से बड़े एग्रीबिजनेस (Agribusiness) के लिए कच्चा माल पैदा करती है।
ओवरप्रोडक्शन की मजबूरी: अमेरिका में मक्का और सोयाबीन जैसी नकदी फसलें (Cash Crops) ही हावी हैं। यहाँ ओवरप्रोडक्शन एक मजबूरी है, इसलिए उन्हें हमेशा निर्यात बाज़ार चाहिए।
मांस और एथेनॉल: अमेरिका के 350 मिलियन टन मक्का उत्पादन का बड़ा हिस्सा वहाँ के विशाल पशु फ़ीड (30 मिलियन टन मांस उत्पादन के लिए) और एथेनॉल बनाने में जाता है। इसलिए, अमेरिका की खास निगाह भारत के एथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम पर है—ताकि वह अपना ओवरप्रोडक्शन यहाँ खपा सके।
राजनीतिक दाँव: ट्रंप का वोटर बेस
इस मक्का निर्यात के पीछे गहरा राजनीतिक दाँव छिपा है, बॉस!
कॉर्न बेल्ट (Corn Belt) अमेरिका के मिडवेस्ट का पर्याय है, जो ट्रंप के वोटर बेस का कोर हार्टलैंड है!
आयोवा जैसे मक्का-सोयाबीन उत्पादक राज्य ही अमेरिकी चुनावी चक्र को किक-स्टार्ट करते हैं। यानी, मक्का लॉबी अमेरिकी राजनीति में झुनझुना बजाने की नहीं, बल्कि डिसीजन लेने की ताकत रखती है!
चीन के यू-टर्न के बाद, चीन ने अमेरिकी सोयाबीन खरीदना बंद कर दिया है। इससे उत्तरी डकोटा जैसे राज्यों में संकट खड़ा हो गया है। इसलिए निर्यात बाज़ार खोलना ट्रंप के लिए राजनीतिक मजबूरी है।
भारत के लिए ख़तरा: मेक्सिको की कहानी और 'आत्मनिर्भरता' की बलि
भारत के लिए यहाँ जोखिम बहुत बड़ा है।
मेक्सिको की कहानी: NAFTA डील के बाद मेक्सिको को मजबूरन सस्ता अमेरिकी मक्का आयात करना पड़ा। इसका नतीजा क्या हुआ? दस लाख से ज़्यादा मेक्सिकन किसानों का धंधा चौपट हो गया और उन्हें अमेरिका की फ़ैक्ट्रियों में मजदूर बनना पड़ा! भारत इस त्रासदी को दोहराना नहीं चाहेगा।
बाज़ार में डंपिंग: अमेरिकी मक्का की कीमत भारत के मक्का से लगभग 30% कम है। शिपिंग और अन्य खर्च जोड़ने के बाद भी यह भारत में डंपिंग की तरह होगा, जिससे भारतीय किसानों की लुटिया डूब जाएगी।
एथेनॉल का मिशन फेल: बिहार के किसान भी मक्का की खेती की तरफ मुड़े हैं, और वहाँ जल्द ही चुनाव होने हैं। सस्ता आयात allowed किया गया, तो यह किसानों की बर्बादी और भाजपा के खिलाफ राजनीतिक बवंडर खड़ा कर देगा।
सबसे बड़ी बात, एथेनॉल ब्लेंडिंग का मकसद तेल आयात बिल कम करना और किसानों की जेब में पैसा डालना है। अगर हम एथेनॉल के लिए भी कच्चा माल (मक्का) आयात करेंगे, तो इस पूरे कार्यक्रम का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा!
निष्कर्ष साफ है: भारत अपनी स्वतंत्र नीति पर चलेगा। अपनी अर्थव्यवस्था और किसानों की सुरक्षा दाँव पर लगाकर अमेरिका की पूंजीवादी खेती की मजबूरी पूरी नहीं की जाएगी!
Source: TheHindu.com: newswebsite
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