तालिबान विदेश मंत्री की 'सफाई': महिला पत्रकारों को न बुलाना सिर्फ़ 'टेक्निकल इश्यू' था, कोई इरादा नहीं!
'शॉर्ट नोटिस' का बहाना या 'फुल-प्रूफ प्लान'?
भारत की सप्ताह भर की यात्रा पर आए मुत्तकी ने रविवार को एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन इस बार महिला पत्रकारों को न्योता दिया गया था।
अफगान दूतावास में हुई शुक्रवार की कॉन्फ्रेंस के विवाद पर मंत्री ने कहा:
"यह शॉर्ट नोटिस पर था और पत्रकारों की एक छोटी सूची तय की गई थी, और जो भागीदारी सूची पेश की गई थी, वह बहुत विशिष्ट थी।"
उन्होंने आगे जोड़ा कि:
"यह ज़्यादातर एक तकनीकी मुद्दा था। हमारे सहयोगियों ने पत्रकारों की एक विशिष्ट सूची को निमंत्रण भेजने का फैसला किया था और इसके अलावा कोई दूसरा इरादा नहीं था।"
यानी, मुत्तकी ने साफ़ कह दिया कि यह जानबूझकर नहीं किया गया, बल्कि 'टेक्निकल' गड़बड़ी थी!
भारत में 'जेंडर डिस्क्रिमिनेशन': बवाल क्यों मचा?
बॉस, यह विवाद मामूली नहीं था। शुक्रवार को कई पत्रकारों ने महिला पत्रकारों को न बुलाने के फैसले को "अस्वीकार्य" बताया था।
यहां सवाल सिर्फ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का नहीं है, बल्कि तालिबान सरकार पर मानवाधिकार हनन के, खासकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के खिलाफ गंभीर आरोप लगे हैं।
याद कीजिए, सितंबर 2021 में, तालिबान ने छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी लगा दी थी! इसके अलावा, महिलाओं को कई नौकरियों और अधिकांश सार्वजनिक स्थानों से दूर कर दिया गया है।
एडिटर्स गिल्ड की 'कड़क' आलोचना
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने शनिवार को इस बहिष्कार की कड़ी निंदा की।
उनका स्टैंड एकदम क्लियर था:
"भले ही वियना कन्वेंशन के तहत राजनयिक परिसर सुरक्षा का दावा करें, लेकिन यह भारतीय धरती पर प्रेस एक्सेस में किए गए इस खुले लिंग भेदभाव को सही नहीं ठहरा सकता।"
गिल्ड ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह सार्वजनिक रूप से यह पुष्टि करे कि भारत में होने वाले राजनयिक आयोजनों में प्रेस एक्सेस को लैंगिक समानता का सम्मान करना होगा।
सरकार का 'यू-टर्न': विदेश मंत्रालय ने झाड़ा पल्ला
इस पूरे मामले पर राजनीतिक हलचल भी खूब हुई।
विदेश मंत्रालय (MEA) ने बाद में साफ़ किया कि मुत्तकी द्वारा दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस से उसका कोई लेना-देना नहीं था।
लेकिन, यह बात भी शीशे की तरह साफ़ है कि मुत्तकी ने शुक्रवार की सुबह विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की थी—जो 2021 के बाद नई दिल्ली और तालिबान के बीच सबसे बड़ा द्विपक्षीय संपर्क था!जयशंकर ने मुत्तकी को बताया कि भारत काबुल में अपना दूतावास फिर से खोलेगा, और मुत्तकी की यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने में "एक महत्वपूर्ण कदम" है।
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस अपमान पर स्थिति साफ करने को कहा! उनका आक्रामक लहजा देखिए:
"अगर महिला अधिकारों को लेकर आपकी मान्यता सिर्फ चुनावों तक ही सीमित नहीं है, तो हमारे देश में, जो देश की रीढ़ हैं, उन सबसे सक्षम महिलाओं का यह अपमान कैसे होने दिया गया?"
निष्कर्ष यह है, बॉस! एक तरफ कूटनीति का चक्रव्यूह है, जहाँ भारत तालिबान से संपर्क बढ़ा रहा है (मुंबई में वाणिज्य दूत को अनुमति दी), और दूसरी तरफ घरेलू राजनीति में महिला सम्मान का मुद्दा गरमाया हुआ है। तालिबान का 'टेक्निकल इश्यू' का बहाना फिलहाल राजनीतिक गर्मी को शांत नहीं कर पाया है!

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