सुधांशु त्रिवेदी का विश्लेषण: भारत का भविष्य और आंतरिक चुनौतियां : (Sudhanshu Trivedi's Speech From Republic Bharat Samwad)
आज जब हम इस विषय पर संवाद के लिए एकत्र हुए हैं, तो दुनिया का दौर कुछ अलग दिखाई पड़ रहा है। देयर इज अ टसल ऑन टैरिफ। एंड देयर इज अ कंफ्यूजन ऑन व्हाट इज गोइंग टू बी देयर इन द फ्यूचर। व्हाट आर द चैलेंजेस एंड हाउ द थिंग्स विल कम आउट।
मगर इसी के साथ-साथ अगर आप देखें, तो दुनिया में भी एक बड़े बदलाव का दौर है और ऐसा नहीं कि भारत में यह पहली बार हुआ है। मैं याद दिलाना चाहता हूं 1998, पोखरण एक्सप्लोजन, 11 और 13 मई 1998। उसके बाद हम पर लगे आर्थिक प्रतिबंध और उस समय जितने भी सो कॉल्ड इंटेलेक्चुअल्स थे, उन्होंने कहा, "दिस गवर्नमेंट हैज रुइंड दिस कंट्री।" क्यों? उन्होंने कहा, "ना हमारे पास उस ज़माने में फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर था, ना हमारे पास फाइनेंशियल इंफ्रास्ट्रक्चर था, ना एक पैसा कोई लगाने को तैयार था, भारत में $1 लगाने को तैयार था और ऊपर से इकोनॉमिक सैंक्शंस। अब तो ये देश खत्म।"
मई 1998 से 2 साल से कम का समय, मार्च 2000, बिल क्लिंटन, अमेरिकन प्रेसिडेंट 5 दिन के लिए भारत में। क्या हो गया ऐसा 2 साल के अंदर, जब उस दौर में हमने निकलकर यह स्थिति स्थापित की थी? तो आज तो हमारी स्थिति में बहुत भारी अंतर है।
क्योंकि हर चुनौती एक नई संभावना को लाती है। जो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा ना कि आपदा को अवसर में बदलने की कला हमारे प्रधानमंत्री जी को आती है और पूर्व में भी हम इसको दिखा चुके हैं। अब कोई आपसे कहेगा, "ठीक है! वो पुराने ज़माने में हुआ कैसे था?" तो मैं एक फैक्ट और भी बताना चाहता हूं।
आजकल इस देश में लोगों को आपस में लड़वाने का प्रयास बहुत जबरदस्त तरीके से चल रहा है कि हर मुद्दे के ऊपर लड़ाओ। तो लोग कई-कई बार अमीर-गरीब के ऊपर लड़ाते हैं। तो मैं बताना चाहता हूं कि उस समय हमारे यहां जब $1 भी कोई इन्वेस्ट करने को तैयार नहीं था, तो इनिशियल मनी कहां से आया था? पुराने लोगों को अगर याद हो, रीसर्जेंट इंडिया बॉन्ड निकाले थे वाजपेयी सरकार ने। $5 बिलियन के सब्सक्रिप्शन का टारगेट रखा गया था और $5.2 बिलियन आया था। किसने लगाया था? एनआरआई ने लगाया था। इंडियंस ने लगाया था। बाहर के बिज़नेसमैन ने लगाया था।
यानी आज जिनके खिलाफ पूरा वातावरण नफरती बनाने का प्रयास किया जाता, अगर उस दौर में देखें तो उस समय भारत की अर्थव्यवस्था डूब गई होती। मगर सबने मिलकर काम किया और उसके बाद इंफ्रास्ट्रक्चर का जो दौर आया। मैं आपको लॉजिकली भी बताना चाहता हूं कि वो चीज़ कैसे हुई।
पहले तो पैसा आया बाहर से। नेक्स्ट, हमें इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना था। तो इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए जब नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट बनने की बात आई, तो 50 पैसे का सेस लगाया गया पेट्रोल पे। उससे इनिशियली ₹50000 करोड़ आया। वो तो जस्ट शुरुआत करता है। ये मैं दिसंबर '99 की बात कर रहा हूं, '98-'99 की बात कर रहा हूं। और उसके बाद क्या हुआ कि लिक्विडिटी किस सेक्टर के पास चाहिए? सीमेंट एंड स्टील। तभी तो इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर ग्रो करेगा।
तो क्या किया गया कि जो रेट ऑफ इंटरेस्ट हाउसिंग लोन के 14.5% थे, उन्हें घटाकर 7.25 तक लाया गया। जैसे ही हाउसिंग रेट ऑलमोस्ट हाफ हुआ, मिडिल क्लास ने भारी मात्रा में हाउसिंग लोन लेना शुरू किया। जैसे ही हाउसिंग लोन लेना शुरू किया, तो क्या हुआ? जो कंस्ट्रक्शन सेक्टर में बूम आ गया और लिक्विडिटी किसके पास आ गई? सीमेंट एंड स्टील इंडस्ट्री के पास। जिसको इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए लिक्विडिटी चाहिए थी। तो मिडिल क्लास को मकान मिलने लगा, इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा होने लगा और उस समय हमारा लेबर स्किल्ड नहीं था, अनस्किल्ड था। अनस्किल्ड लेबर का सबसे ज्यादा एंप्लॉयमेंट की कैपेसिटी अगर होती है, तो कंस्ट्रक्शन में होती है। तो लोगों को रोज़गार मिलने लगा।
और इसके बाद, सियाटल, 1999, नवंबर 1999 में सियाटल में सारे जो विकासशील देश थे, हमारे साथ खड़े हो गए। नवंबर '99 में आप जाकर चेक करिएगा, यह भारत पर आरोप लगा कि "इंडिया हैज़ सबोटाज द सियाटल कॉन्फ्रेंस।" हमने कहा, "दुनिया हमारे खिलाफ होती है, होने दीजिए।" नवंबर '99 वो चेंज हुआ और मार्च 2000 में 4 महीने के अंदर अमेरिकन प्रेसिडेंट पांच दिन के लिए भारत आए जो किसी भी अमेरिकन प्रेसिडेंट की लॉन्गेस्ट भारत की यात्रा है।
वर्तमान में भारत की आर्थिक और सामाजिक स्थिति
आज अगर हम कहें कि साहब वो तो पुरानी बात थी, आज क्या होगा? तो आज हम जहां पे आके खड़े हैं, सिर्फ कल ही परसों ( Day of speech 22 Aug 2025) यह न्यूज़ आई है कि मोबाइल के एक्सपोर्ट में जो यूएस को होता है, आई एम टॉकिंग यूएस स्पेसिफिक। मोबाइल एक्सपोर्ट में भारत ने चाइना को पीछे छोड़कर अमेरिकन मार्केट में लार्जेस्ट एक्सपोर्टर ऑफ मोबाइल हैंडसेट बन गया। कितना? केवल कुछ साल पहले 13% था हमारा अब शेयर वहां 44% हो गया है। और जो चाइना का शेयर 65% था, वो 25% पे आ गया है। एंड जस्ट कपल ऑफ वीक्स बैक, वीज़ा को पीछे छोड़कर हमारा डिजिटल प्लेटफॉर्म यूपीआई एक दिन में सबसे ज्यादा डिजिटल ट्रांजेक्शन करने वाला कंट्री बन गया है।
और फिर इतना ही नहीं है। जस्ट लास्ट मंथ, वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट आई है कि अमंग ऑल द मेजर इकोनॉमीज़ ऑफ़ द वर्ल्ड सबसे कम इनइक्वलिटी भारत में है। जो उनकी इंडेक्स है, उसमें हम 25.2 पे हैं। यानी अमीर और गरीब के बीच में जिस खाई को बढ़ाने और लड़ाने का प्रयास किया जाता है, वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कह रही है कि सबसे कम वो भारत के अंदर है।
और वैसे उसका एक और कारण भी है। सिर्फ हम दुनिया के इकलौते देश हैं, जहां पर आपको कई ऐसे इंस्टिट्यूशंस मिल जाएंगे जहां साल में 365 दिन फ्री का खाना मिलता है। मंदिरों में भंडारा और गुरुद्वारों में लंगर। ये दुनिया में और किसी संस्कृति में देखने को नहीं मिलता। वहां तो लोग क्या कहते हैं? "देयर कैन नेवर बी अ फ्री लंच। एंड इफ देयर इज अ फ्री लंच, देयर हैज़ टू बी पॉइज़न इन इट।"
और इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि भारत में एक और आप दृष्टि से देखिए। आज हम डिजिटल ट्रांजेक्शन में दुनिया के नंबर वन देश हैं। यही एक दौर था, हमारे एक फाइनेंस मिनिस्टर थे जिन्होंने फ्लोर ऑफ़ द हाउस पे खड़े होकर कहा था, "भारत में लोग कम पढ़े-लिखे हैं। टेक सेवी नहीं हैं। हाउ दे कैन ट्रांसफॉर्म टू डिजिटल टेक्नोलॉजीज।" आज हम नंबर वन देश नहीं हैं। दुनिया के कुल डिजिटल ट्रांजेक्शन का 48% अकेले इंडिया में होता है, व्हिच इज़ मोर देन पुट अमेरिका चाइना टुगेदर।
आप याद करिए, जापान के प्राइम मिनिस्टर आए थे दिल्ली के खान मार्केट में, उन्होंने डिजिटली दिया था पेमेंट। इमैनुएल मैक्रोन, फ्रांस के प्रेसिडेंट आए और जयपुर में चाय वाले को कुल्हड़ की चाय पीकर चाय का पेमेंट डिजिटली किया था। दैट्स हाउ इंडिया इज़ इमर्जिंग टुडे। और अब आप यह कहेंगे, "सिर्फ यही ट्रांसफॉर्मेशन नहीं है।" उस ट्रांसफॉर्मेशन में पहली बार ऐसा हुआ है कि वर्ल्ड एआई समिट हुई पेरिस में एंड इंडिया बिकम को-चेयर विद फ्रांस। आप इमेजिन करेंगे एआई समिट ग्लोबल और प्राइम मिनिस्टर मोदी जी एंड इमैनुएल मैक्रोन फ्रेंच प्रेसिडेंट वर(were) को-चेयरिंग दैट। दैट्स हाउ इंडिया इज़ इमर्जिंग टुडे एंड इंडिया इज़ बिकमिंग मोर एंड मोर कॉन्फिडेंट।
भारत की बदलती हुई सुरक्षा नीति
और तीसरी चीज़ जो भारत में एक बदलाव की आ रही है, वो यह आई है, एक दौर था व्हेन इंडिया वास कंसीडर्ड एज़ सॉफ्ट स्टेट। कोई भी आता था, आतंकवादी घटना करता था और चला जाता था और हम शांति के कबूतर उड़ाते रहते थे। अब वक्त बदल गया है और वक्त यह बदला है कि हमने उरी के बाद सर्जिकल स्ट्राइक करके दिखाई यूज़िंग आवर आर्मी और उनका टेरर कैंप नष्ट किया। पुलवामा के बाद हमने बालाकोट किया बाय यूज़िंग एयर फ़ोर्स और अबकी बार टेरर बेस नष्ट किया। और पहलगाम के बाद हमने उनके 177 कि.मी. तक अंदर जाकर नो कांटेक्ट वॉर यानी मिसाइल के द्वारा ही क्या किया? जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के हेड क्वार्टर्स जो बहावलपुर और मुरीदके में थे, उनको नष्ट किया।
यानी ग्रैजुअली अब दिखा रहा है कि भारत अब भारत किसी भी प्रकार की ऐसी चीज़ के आगे झुकने को तैयार नहीं है। मतलब ऑन द लाइटर नोट मैं कहूं, वैसे मैं पहले भी बोल चुका हूं। जैश-मोहम्मद का हेड क्वार्टर बहावलपुर में है जिसको मरकज़ सुभान अल्लाह कहते थे। तो एक दौर था कि यहां आते थे दिल्ली, मुंबई, जयपुर, गुवाहाटी, लखनऊ, कानपुर, फैजाबाद, वाराणसी, सूरत। कौन सा ऐसा इलाका था जहां धमाके नहीं होते थे? कौन से ऐसी चलती ट्रेन में धमाका, चलती बस में धमाका, बस अड्डे पे धमाका? लिखा रहता था, "छूना नहीं, वरना कुछ बम विस्फोट हो जाएगा।" बताना, यहां धमाके होते थे। वहां वो लोग बहावलपुर में बैठ के कहते थे, "मरकज़ सुभान अल्लाह।" और अब वो दौर आया है। जब जाकर एक आतंकवादी ने कहा कि "मेरे 14 लोग मार दिए गए मेरे परिवार के। मैं भी मर जाता तो अच्छा था।" यानी कहां वो सुभान अल्लाह कहते थे, अब कहते हैं, "या अल्लाह ये क्या कर दिया? या अल्लाह मेरे परिवार के 14 लोग खत्म हो गए।" ये बदलाव आया है भारत के एटीट्यूड में।
दुनिया में बदलता हुआ शक्ति संतुलन
और एक और बात समझिए। आप यह कहेंगे, "यह तो अभी तक था। व्हाट्स गोइंग टू बी द नेक्स्ट?" मैं नेक्स्ट के लिए बताना चाहता हूं। बिल्कुल लॉजिकली देखिए कि वर्ल्ड के अंदर क्या चेंज आने जा रहा है। मैं इसके लिए कोट करना चाहता हूं जब सोवियत संघ का डाउनफॉल हुआ 1991 में और यह मान लिया गया कि द यूएस मॉडल दैट इज फ्री इकोनॉमी, ग्लोबलाइज़ेशन, कैपिटल मार्केट एंड फ्री डेमोक्रेसी, इट हैज़ फाइनली वन द बैटल फॉर वन्स एंड फॉर ऑल द एवरीथिंग इज़ सेटल्ड फॉर द फ्यूचर ऑफ़ द मैनकाइंड। तो एक फ्रांसिस फुकुयामा नाम के एक राइटर हुए जिन्होंने 1992 में एक किताब लिखी, जिसका नाम था "एंड ऑफ द हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन।" यानी उन्होंने मान लिया ये हिस्ट्री का एंड हो गया।
आज मैं कह सकता हूं 1 जनवरी 1995 को डब्ल्यूटीओ बना था। और जो आज उस समय अमेरिका ने यह सोचा था कि भारत और चीन जैसे कंट्रीज की पॉपुलेशन का यूज होगा और उनकी कंपनीज़ पावरफुल होंगी। बट हुआ इसका उल्टा। चाइना इकोनॉमिक सुपर पावर बन गया। इंडिया प्रोमिनेंट इकोनॉमिक पावर बन गया। तो कई बार यह भी होता है कि "हुई है वही जो राम रचि राखा को करी तर्क बढ़ावे साखा।" सोचा कुछ और था, हो कुछ और गया और आज मैं कह सकता हूं किसी को थोड़ा एक्सट्रीम स्टेटमेंट लगेगा, "व्हाट इज़ हैपनिंग टुडे इज़ बिगिनिंग ऑफ़ द एंड ऑफ़ ग्लोबलाइज़ेशन इन जस्ट 30 इयर्स।"
एंड नाउ यू लुक एट द एंटायर वर्ल्ड, कोलोनाइजेशन लास्टेड फॉर जस्ट 200 इयर्स, जिसमें हम गुलाम भी रहे। देन कम्युनिज्म लास्टेड फॉर लेस देन 75 इयर्स। सोवियत संघ 1917 में बना, 1991 में बिखर गया। एंड नाउ द ग्लोबलाइज़ेशन सीम्स टू बी स्टार्ट डाइंग इन जस्ट 30-35 इयर्स।
और उस समय ग्लोबलाइज़ेशन लाया किस लिए गया था? बेनिफिशियरी हम हुए। और अब मैं कह रहा हूं कि ये जो टैरिफ वार हो रहा है, इसके बेनिफिशियरी हम होने जा रहे हैं। आप कहेंगे, "कैसे?" अब सिंगल पॉइंट कंट्रोल खत्म हो जाएगा। एफ़टीए बनेंगे, फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स। भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ किया, ब्रिटेन के साथ किया, यूएई के साथ किया। इस फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पे किसी का कोई कंट्रोल नहीं रहेगा। ऑब्वियसली इट विल लीड टू अ मल्टीपोलर वर्ल्ड। इसमें किसी को कोई कंफ्यूजन नहीं रहना चाहिए। अब आप कहेंगे, "हू विल बी द बेनिफिशियरी ऑफ़ द मल्टीपोलर वर्ल्ड?"
अब मैं कहूंगा इंडिया, तो आप कहेंगे, "हाउ कम यू आर सेइंग दैट इंडिया विल बी द बेनिफिशियरी ऑफ़ द मल्टीपोलर वर्ल्ड?" अब मैं आपको सिर्फ दो-तीन फैक्ट्स बताना चाहता हूं। यू योरसेल्फ कैन डिसाइड कि व्हाट इज़ गोइंग टू बी देयर इन द फ्यूचर।
देखिए, अमेरिका ने नाटो के कंट्रीज से कहा, यूरोपियन कंट्रीज से कि आप अपना डिफेंस एक्सपेंडिचर 5% बढ़ाइए, अदरवाइज़ आई विल नॉट बी एबल टू सपोर्ट यू। अब यूरोप के सामने ऑप्शन क्या होगा? वो खुद अपना 5% एक्सपेंडिचर बढ़ाकर डिफेंस प्रोडक्शन शुरू करें, व्हिच विल बी इकोनॉमिकली वेरी चैलेंजिंग फॉर देम। दूसरा, यूरोप के सामने एक और प्रॉब्लम है। दो-तीन बड़े कंट्रीज को छोड़ दीजिए। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और कुछ हद तक इटली। बाकी सब इतने छोटे-छोटे देश हैं। किसी के पास कुछ है, किसी के पास कुछ है, सब कुछ किसी के पास नहीं है। वहां पे लेबर रेट इतने हाई हैं। और अगर वो टैरिफ को बचने के लिए अमेरिका में शिफ्ट करें मैन्युफैक्चरिंग, तो वहां भी लेबर रेट उससे ज्यादा हाई है और पॉपुलेशन एज्ड है।
तो देयर इज़ ओनली टू ऑप्शन। आइदर शिफ्ट टू चाइना और शिफ्ट टू इंडिया। चाइना को ले मिस ट्रस्ट है। सो बाय डिफ़ॉल्ट बाय प्रोसेस ऑफ एलिमिनेशन द ओनली डेस्टिनेशन इज़ गोइंग टू बी इंडिया। और ये मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हूं। आपने देखा कि रफ़ाल बनाने वाली कंपनी डस एविएशन ने अपने फ्यूसलेज बनाने का कॉन्ट्रैक्ट टाटा डिफेंस सर्विसेज़ को अभी लास्ट मंथ दिया है। दिस इज़ द बिगिनिंग ऑफ़ यूरोप के पास क्या है? गुड टेक्नोलॉजी है, डिफेंस गेट मटेरियल्स हैं, उनके पास लॉजिस्टिक्स है, फाइनेंस है। मैन पावर नहीं है। मैन पावर आउटसोर्स करनी ही पड़ेगी।
और अब मैं अमेरिका और चाइना के बारे में एक-एक डाटा देता हूं। मैं कोई अपना ओपिनियन नहीं दे रहा हूं, जस्ट अ फूड फॉर थॉट। दो डाटा अमेरिका के बारे में और दो डाटा चाइना के बारे में। देन यू कैन ड्रॉ अ कंक्लूजन व्हाट इज़ गोइंग टू बी देयर इन द फ्यूचर।
अमेरिका में जो अल्ट्रा इंडिविजुअलिज़्म का कल्चर चला, आज चैलेंज दुनिया में अल्ट्रा नेशनलिज्म नहीं अल्ट्रा इंडिविजुअलिज़्म है। तो क्या हुआ? वही हमारे देश में भी हो रहा है। आपस में खूब लड़ो। किस में लड़ो? अरे, बाप-बेटे लड़ो, पति-पत्नी लड़ो, भाई-भाई लड़ो। सरकार है ना, कोर्ट में जाके लड़ो। रूल्स एंड रेगुलेशंस हैं तुम्हारे लिए लड़ने के लिए। सब जाके फ़ौजदारी करो, मुकदमे में लड़ो और अपनी इंडिविजुअल आइडेंटिटी बनाओ। उस कल्चर ने आपको क्या सिखाया? कि जैसे ही आपके मदर-फ़ादर कुछ बोलें, तो आपकी सेल्फ एस्टीम जाग जानी चाहिए। "ऐसे कैसे हम मान लेंगे? मेरी कोई डिग्निटी नहीं है।" अरे, बड़ा भाई, बड़ी बहन तो छोड़ दीजिए, मदर-फ़ादर की बात ऐसी की तैसी। वही आपको कल्चर यह बताता है कि व्हेन यू आर गोइंग टू जॉइन ए प्रोफेशन, देयर आर ओनली टू लॉज़ ऑफ़ प्रोफेशन। नंबर वन, बॉस इज़ ऑलवेज राइट। नंबर टू, इफ देयर इज़ एनी कंफ्यूजन, रेफर टू रूल नंबर वन।
अब आप सोचिए। उसके बाद कहा जाता है, "कंपनी के तो कल्चर को फॉलो करो।" और "फैमिली के कल्चर को तोड़ दो।" जबकि लास्ट रिसोर्ट आपके लिए फैमिली जाके बचती है। फिर उसके बाद आइए। उसके बाद आपको क्या बताया जाता है कि अगर बॉस डांट रहा हो, तो कितना भी बुरा लगे, दुम हिलाते रहना है। जिससे कॉन्ट्रैक्ट मिलना है, वो डांट भी रहा हो, तो दुम हिलाते रहना है। सारी सेल्फ एस्टीम और सारी ईगो आके घर में दिखानी है।
यह क्या है? यही वो चीज़ है जो मैंने कहा ना, "फ्री लंच जहां से नहीं मिलता।" या आपको पानी की बोतल ₹10 की मिलती है, मगर इसके बावजूद Facebook भी फ्री है, Instagram भी फ्री है, WhatsApp भी फ्री है, सिर्फ इंटरनेट का ही तो पैसा देना है। फ्री क्यों दे रहे हैं भाई? क्योंकि आपके माइंड को कैप्चर करना है। जो चाहे वो समझाना है। आइडियोलॉजिकल सबजुगेशन करना है, इसलिए।
ये एक अलग प्रकार का चैलेंज अमेरिका में एक्सट्रीम पे है। अब मैं बताना चाहता हूं, क्यों? जब सोशल सिक्योरिटी सिस्टम अमेरिका में आया रोनाल्ड रीगन के ज़माने में 1980 में, तो उस समय मिल्टन फ़्रीडमन बहुत बड़े इकोनॉमिस्ट थे। यू कैन गो एंड चेक, ही वॉर्न्ड द अमेरिकन गवर्नमेंट इन '82, "डोंट डू दिस।" उन्होंने वर्ड यूज़ किया, "डोंट नेशनलाइज़ द फ़ैमिली।" क्योंकि आप सारी फ़ैमिली की रिससिबिलिटी खुद पे ओन करेंगे, इट विल इवेंचुअली लीड टू इकोनॉमिक डिजास्टर। और 2024 पहला वर्ष है जब सोशल सिक्योरिटी डिपेंडेंट पॉपुलेशन 50% हो गई अमेरिका में। यानी अब आधे लोग काम करेंगे, आधे लोग सोशल सिक्योरिटी पे रहेंगे। चूंकि पॉपुलेशन ग्रैजुअली ओल्ड हो रही है, तो इन द कमिंग डिकेड्स द राइज़ ऑफ़ सोशल सिक्योरिटी डिपेंडेंट्स विल नॉट बी लीनियर, इट विल बी एक्सपोनेशियल।
आपने देखा होगा लास्ट ईयर फ्रांस में किस बात को लेके प्रदर्शन हो गए, हिंसक प्रदर्शन हो गए कि सरकार ने रिटायरमेंट की एज दो साल बढ़ा दी। भारत में तो लोग खुश हो जाएं कि 2 साल के लिए मुझे काम करने का और मौका मिलेगा। मगर वहां क्यों? क्योंकि आपको सोशल सिक्योरिटी के चलते हुए लगभग वही मिल रहा है घर बैठे हुए, तो दो साल क्यों काम करना?
और एस पर द इकोनॉमिक एस्टीमेट, आफ्टर 25 इयर्स, इन टू-टू-थ्री डिकेड्स, अमेरिका की सोशल सिक्योरिटी लायबिलिटी इज़ गोइंग टू बी समवेयर अराउंड 60 टू 62 ट्रिलियन डॉलर्स। दैट इज़ ट्वाइस द जीडीपी ऑफ़ अमेरिका। आप सोचिए कितने बड़े इकोनॉमिक चैलेंज की तरफ आगे बढ़ रहे हैं और आप सोशल चैलेंज जस्ट आई एम पुटिंग द डाटा। अमेरिका की पॉपुलेशन कितनी है? 33 करोड़। गंस कितनी हैं अमेरिका में? 39 करोड़।
ये अल्ट्रा इंडिविजुअलिज़्म जो था, सबके पास जो मन आएगा वो मैं रखूंगा, जो मन आए वो जो गोविंदा का गाना था ना, "मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मर्ज़ी।" अब आप सोच लीजिए अगर मर्ज़ी चलने लगी, विद 125, 102% गंस इन हैंड्स ऑफ दोज़ पीपल, व्हाट विल हैपन।
नाउ कम टू चाइना। चाइना की इकोनॉमिक ग्रोथ बहुत शानदार है। बट एक थॉट देता हूं। आप लोगों ने कभी सोचा होगा, चाइना ने वन चाइल्ड पॉलिसी अडॉप्ट की 1978 में। और वो अथॉरिटेरियन रिज़ीम है। उसने फ़ोर्सफ़ुली इंप्लीमेंट भी किया। एंड दे क्लेम दैट दे हैव सक्सेसफुली इंप्लीमेंटेड इट। अगर सक्सेसफुली इंप्लीमेंट किया, तो लास्ट 47 इयर्स में उनकी पॉपुलेशन 11% की ग्रोथ से कैसे बढ़ती रही? जैसे इंडिया की पॉपुलेशन बढ़ रही थी, उसी रफ़्तार से चाइना की पॉपुलेशन बढ़ती रही फॉर फोर एंड फाइव, फोर एंड हाफ़ डिकेड्स। तो या तो ये सच है या वो सच है। या तो इंप्लीमेंटेशन ऑफ़ वन चाइल्ड पॉलिसी इज़ रॉन्ग, ये डाटा गलत है या फिर ये डाटा गलत है।
आई एम लीविंग अप टू यू। आई एम नॉट पुटिंग एनी एलिगेशन। तो देयर इज़ वन थ्योरी कि द पॉपुलेशन डाटा ऑफ़ चाइना इज़ हाइली एग्जैजरेटेड। इट्स नॉट 140 करोड़। अगर '78 में सिंगल चाइल्ड पॉलिसी अडॉप्ट कर ली होगी, तो इट हैज़ टू बी लेस दैन 100 करोड़। इसीलिए आप एक और बात सोचिए। इंडिया में जब इकोनॉमिक क्राइसिस की बात आती है, तो कहा जाता है 140 करोड़ का मार्केट है। दे कैन अब्ज़ॉर्ब इन द डोमेस्टिक। यूरोप की पॉपुलेशन 70 से 75 करोड़ है। चाइना इज़ डबल द यूरोप पॉपुलेशन। इंडिया से कहीं बेहतर इकोनॉमिक स्थिति में है। इंडिया से कहीं बड़ा मिडिल क्लास है। इंडिया से बेटर परचेसिंग कैपेसिटी है। तो वो क्यों नहीं अब्ज़ॉर्ब कर पाता अपने यहां? वो क्यों कहता है एक्सपोर्ट ओरिएंटेड ही चाहिए? जस्ट फूड फॉर थॉट। सोचिए कि क्या पॉसिबिलिटी?
सेकंड थिंग, चाइना की इकोनॉमी में सबसे बड़ा कंट्रीब्यूटर क्या था? रियल एस्टेट सेक्टर। एंड देयर बिगेस्ट रियल एस्टेट कंपनी, एवरग्रांड, हैज़ फाइल्ड बैंकरप्सी इन 2024 और आपने तमाम घोस्ट टाउन सुने होंगे, वहां पर हैं। 26 रेलवे स्टेशंस ऐसे हैं जहां एक भी ट्रेन नहीं जाती है। 71 बैंक्स का लोन था एवरग्रांड के ऊपर। तो रियल एस्टेट जो 30% कंट्रीब्यूट कर रहा था जीडीपी में, वो बबल बस्ट कर गया है। इसके बावजूद रेट ऑफ़ ग्रोथ बहुत शानदार है। थोड़ी ये बातें हजम नहीं होती हैं।
इसलिए अमेरिका और चाइना दोनों का डाटा आप सोचिए और उसके बाद देखिए कि भारत किस दिशा की तरफ इन परिस्थितियों के बीच में। यूरोप में एक अलग प्रकार का चैलेंज है, डेमोग्राफिक। एस पर वन मीडिया रिपोर्ट, 20 साल से कम उम्र के 25% लड़के-लड़कियां यूरोप में मुस्लिम हैं और मुस्लिम ओरिजिनल नेटिव मुस्लिम नहीं हैं। मोस्ट ऑफ़ देम आर माइग्रेंट फ्रॉम द मिडिल ईस्ट। नाउ यू कैन इमेजिन व्हाट चैलेंज यूरोप इज़ गोइंग टू। आपने जस्ट आपको एक पिक्चर दिया। अगले एक से दो डिकेड में क्या चैलेंज अमेरिका के पास है? क्या चैलेंज यूरोप के सामने है और क्या चैलेंज चाइना के सामने है? और उसके बाद क्या चैलेंज और अपॉर्चुनिटी हमारे पास है?
भारत के सामने आंतरिक चुनौतियां
चैलेंज क्या है हमारे पास? चैलेंज यह है, इंडिया को एक्सटर्नल कोई चैलेंज नहीं है। मैंने बताया, एक्सटर्नल सिचुएशन इंडिया के लिए मोस्ट फेवरेबल है। चैलेंज अंदर है। क्योंकि हमारे यहां तमाम लोग बैठे हुए हैं, जिनको ये इंश्योर करना है कि इंडिया की ग्रोथ ना आने पाए। और यह भी बात मैं फैक्ट के साथ कोट करता हूं। यह आज से नहीं हो रहा है। भारत के अंदर एक स्ट्रक्चर्ड प्रयास पिछले कुछ सालों में चल रहा है टू फ्रेगमेंटेशन ऑफ़ इंडिया ऑन वेरियस थिंग्स।
आई एम कोटिंग पाकिस्तान की सेनेट की एक फर्स्ट रिपोर्ट ऑफ़ कमेटी ऑफ़ होल पब्लिश्ड इन अक्टूबर 2016 ऑन उसका शीर्षक क्या है? "द पॉलिसी ऑफ़ रीसेंट डेवलपमेंट पॉलिसी ऑन रीसेंट डेवलपमेंट बिटवीन इंडिया एंड चाइना।" ओ सॉरी, इंडिया एंड पाकिस्तान। उसके पॉइंट नंबर एट और नाइन पर जाकर देखिएगा वो क्या कहता है वहां पे, इस्लामाबाद पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट कोटेड बाय पाकिस्तानी सेनेट इन देयर रिपोर्ट इन अक्टूबर 2016, 8-9 साल पुरानी बात कह रहा हूं। वो कह रहा है कि इंडिया की फ़ॉल्ट लाइंस को हमको टारगेट करना है, मुस्लिम, क्रिश्चियन एंड सिख। फिर वो कहता है, हिंदू हिंदू सोसाइटी के अंदर दलित और अदर बैकवर्ड क्लासेस को टारगेट करना है। और उसके बाद लिखा हुआ है कि साहब इसको टारगेट करके जो हिंदुत्व की पॉलिटिक्स है जो मोदी की एंटी पाकिस्तान पॉलिसी है, उसको डेमोलिश करना है। पॉइंट नंबर नाइन में क्या लिख रहा है? कह रहा है, "इसके लिए हमको आउट रीच करना है।" किसको आउटरीच करना है? कह रहा है, "सिविल सोसाइटी, सेक्शन ऑफ़ मीडिया, सेक्शन ऑफ़ इंटेलेक्चुअल्स एंड द पॉलिटिकल पार्टीज़।"
अब मैं दूसरी बात कहता हूं। 2014 में पावर चेंज हुई, तो लोगों को लगता था यह तो फ्लूक था, तुक्का था। '19 में लौट आएंगे। '19 के बाद छटपटाहट बढ़ गई। अब आप जाके चेक करिए, 2021 में पूरी दुनिया के कई इंस्टीट्यूशंस में कॉन्फ्रेंस होती है, "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व।" फिर भारत में कॉन्फ्रेंस होती है, '21-'23 में "इरैडिकेशन ऑफ़ सनातन धर्म।" उसके बाद 2021 मार्च में एक हेनरी लूसी फाउंडेशन है, जिसमें कि वह बाकायदा एक रिसर्च पेपर पब्लिश करते हैं कि हिंदू मेजॉरिटेरियनिज्म को कैसे कंटेन करना है और उसके लिए लगभग $4 लाख डॉलर का फंडिंग सिर्फ़ पेपर बनाने के लिए की जाती है नॉट फॉर प्रोजेक्ट। तो उसमें आता है कि कास्ट डिवाइड को बढ़ाना है और इसके लिए कास्ट सेंसस के इशू को आगे बढ़ाना है। इसीलिए हमारी सरकार ने ये डिसीजन लिया कि कास्ट के आइडेंटिफिकेशन को डिस्ट्रक्टिव हाथों में नहीं जाने देना है। उसका पॉजिटिव और कंस्ट्रक्टिव यूज़ करना है। और इसीलिए मैं कहता हूं, 2020 से पहले का उनका कोई डिमांड दिखा दीजिए। अब यह संयोग है या प्रयोग है। मैं सिर्फ़ आपके सामने फैक्ट्स रख रहा हूं, व्हिच यू कैन वेरीफाई फ्रॉम योर सोर्सेस।
अब आप देखिए, एक नया दौर शुरू हुआ भारत के अंदर डिवीजन क्रिएट करने का। याद करिए, कर्नाटका के एक मिनिस्टर थे फाइनेंस मिनिस्टर, जिन्होंने कहा कि साउथ जो है वो ज्यादा टैक्स देता है। नॉर्थ कम देता है। तो उनसे जर्नलिस्ट ने पूछा, "तो क्या अलग हो जाना चाहिए?" "हां, हम अलग होने की सोचेंगे।" नॉर्थ साउथ के डिवाइड करो। उसके बाद क्या डायलॉग बोला तेलंगाना के सीएम ने बिहार के लोगों के लिए? कि "उनका डीएनए खराब है और हमारा डीएनए अच्छा है।" क्या बोला तमिलनाडु के मिनिस्टर ने यूपी और बिहार के लोगों के लिए? "हम किसी काम को छोटा-बड़ा नहीं मानते।" वो कहते हैं, "यहां सफ़ाई करने के लिए आते हैं।" अब आप देखिए, तमिल और हिंदी का कॉन्फ्लिक्ट '60 में सुना था। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय बनाम मराठी की बात हुई थी। पर मराठी बनाम हिंदी की का टसल आप पहली बार देख रहे हैं। अब कन्नड़ बनाम हिंदी का टसल आप पहली बार देख रहे हैं। और मैं अभी से भविष्यवाणी कर रहा हूं। अगले छ: महीने में आप बांग्ला बनाम हिंदी का टसल देखेंगे, क्योंकि भारत को लड़ाना है। दक्षिण और उत्तर को लड़ाना है, प्रांतों को लड़ाना है, भाषाओं को लड़ाना है। और मजे की बात, जिन्होंने अपनी भाषा में कभी इंजीनियरिंग और मेडिकल पढ़ाया नहीं, वही लड़ाने के लिए लगे हुए हैं। मोदी जी की सरकार ने आके 16 भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई शुरू की है।
आप सोचिए, प्रांत पर लड़ाना है, क्षेत्र पर लड़ाना है, भाषा पर लड़ाना है, जात पर लड़ाना है। "भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाल्लाह" का ख्वाब ऐसे थोड़ी साकार होना है। इसलिए यह चैलेंज हमारे लिए अंदर से है। जिसे हम लोग एक दौर में जब बच्चे थे, तो संघ में एक गीत था कि "हो गए हैं स्वप्न सब साकार। कैसे मान लें हम टल गया सर से व्यथा का भार। कैसे मान लें हम।" तो वो चीज़ की अगली पंक्ति आज बहुत गंभीर है। "राष्ट्र को है लोग भूले स्वार्थ है युग मंत्र सारा। वर्ग-जाति-विभेद की अब बह रही है कलुषधारा।" "इस अमा के तिमिर को" मतलब रात्रि के अंधकार को, "इस अमा के तिमिर को अब अरुणिमा क्या मान लें हम टल गया सर से व्यथा का भार कैसे मान लें हम।" इसलिए हमें ध्यान रखना है कि बाहर भारत के लिए बहुत अनुकूल परिस्थितियां हैं, मगर अंदर बस एक पंक्ति याद रखिएगा, "हम कभी नहीं भी हारे हैं दुश्मन के छल छंदों से, हम तो सदा ही हारे हैं अपने घर के जयचंदों से।"
तो हमें यह ध्यान रखना है कि देश के अंदर क्या हो रहा है और अंत में मैं यह कहना चाहता हूं, फैक्चुअल पोजीशन मैंने आपके सामने रखी, आगे क्या होने वाला है, एक शॉर्ट टाइम में यह फ्यूचर आगे रखा, मगर इसके साथ-साथ भारत दुनिया को देने क्या जा रहा है? इसको भी समझिए। भारत का राइज़ किस लिए होने जा रहा है? वर्ल्ड को डोमिनेट करने के लिए नहीं होने जा रहा है। आप एक हिस्टोरिकल पैराडाइम शिफ़्ट को समझिए। वर्ल्ड की ओल्डेस्ट सिविलाइज़ेशन राइज़ कर रही है। इट इज़ अवेकनिंग फ्रॉम अ स्लंबर ऑफ़ मिलेनियम। और इसीलिए उन सबको डर लग रहा है क्योंकि हमें अपने पर कॉन्फिडेंस की कमी है।
दुनिया की जितनी भी बड़ी-बड़ी शक्तियां, थिंक टैंक, थियोलॉजियंस हैं, उनको पता है कि इंडिया और हिंदू सोसाइटी का राइज़ नहीं होना चाहिए वरना बहुत खतरा हो जाएगा। और मैं यह भी कहता हूं, भारतीय समाज में हर वर्ग कुछ ना कुछ सीख देता है। मुस्लिम समाज की बहुत अच्छी बातें हैं जो सीख देती हैं। वहां पर वो कहते हैं, "हमें गैस मिली ठीक है। हमें शौचालय मिला, हमें घर मिला, आयुष्मान भारत मिला। वो सब तो ठीक है, हेल विद इट। ये बताओ, मेरी कौम का के नेता क्या कह रहे हैं?" हमारे आदमी कहता है, "अरे मुझे यह इतने हजार का यह फायदा मिल गया, मुझे थोड़ा फ्री का यह मिल गया, फ्री का यह मिल गया। फ्री, हेल विद इट।"
एक समष्टि भाव से चल रहा है, टीम स्पिरिट से और एक इंडिविजुअल स्पिरिट से। बस स्पष्ट कहूं, किसी को बुरा भी लग सकता है। एक वर्ग स्वार्थ परक दृष्टि से सोच रहा है। अपना स्वार्थ, अपने क्षेत्र का स्वार्थ, अपने वर्ग का स्वार्थ, अपनी जाति का स्वार्थ। और जब आप स्वार्थों में बटते हैं, तो क्या होता है? आख़िर में जाके कटते हैं। और अगर किसी को कंफ्यूजन हो, तो वो देख ले। मैं एक एग्जांपल कोट कर देता हूं जाते-जाते। भारत में एक इलाका था, सिलहट, जो अब बांग्लादेश में चला गया। सिलेट में मेजॉरिटी पॉपुलेशन हिंदुओं की थी और बाय वोटिंग ये डिसाइड होना था कि वो भारत में आसाम का हिस्सा बनेगा या पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा। वहां पर हिंदू समाज में सबसे बड़ी जाति जो थी, वो शेड्यूल कास्ट की एक कम्युनिटी थी, जिसके जोगेंद्र नाथ मंडल ही उसके नेता थे जो पाकिस्तान के पहले लॉ मिनिस्टर हुए।
उन्होंने जो आजकल भीम-मीम कहा जाता है ना, उसमें आकर उन्होंने कहा कि नहीं, "मेरी जिन्ना से बात हो गई है और वी विल रिमेन इन विद द साइड ऑफ़ मुस्लिम लीग एंड देन वी विल मोर फ्लोरिश देन द सो कॉल्ड हिंदू इंडिया वि इज़ इमर्जिंग।" और उन्होंने अपनी जाति का वोट डलवा दिया, तो हिंदू वोट डिवाइड हो गया एंड सिलहट बिकम पार्ट ऑफ़ पाकिस्तान एंड इट दिस हैपन इन 1947।
जस्ट थ्री इयर्स आफ्टर, इन 1950, सी द रेजिग्नेशन लेटर ऑफ़ जोगेंद्र नाथ मंडल। वो पैथेटिक होकर कहते हैं कि उन्हीं की जाति के लोगों के घरों में आकर, गांवों में आग लगाई गई। लोगों को मारा गया। महिलाओं से बलात्कार हुआ और कहा गया, "एक ही रास्ता है, कन्वर्ट हो जाओ या कट जाओ।" और दुखी होकर वो भारत भाग के आए, तो जयचंद से ले जोगेंद्र नाथ मंडल तक जिसने कट्टरपंथियों का साथ दिया है, उसका हश्र क्या हुआ, इस देश को याद रखना चाहिए।
तो फिर मैं एक बात कहूं कि "कहनी है एक बात हमें इस देश के पहरेदारों से, संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से।" जो जनरल बिपिन रावत ने 2.5 वॉर की गई थी एंड लास्ट में मैं कहना चाहता हूं, "बी रेस्ट एश्योर्ड इंडिया का टाइम आ गया है।" जो प्रधानमंत्री जी ने कहा है ना, "यही समय है, सही समय है।" कैसे?
बड़े-बड़े दिव्य महापुरुष कह के गए हैं। स्वामी विवेकानंद ने अपना अंतिम समय जब 1901 में वो अमरनाथ की गुफ़ा में गए, 1902 में उन्होंने शरीर छोड़ दिया। उन्होंने बाहर निकल के कहा था, "मैंने ध्यान लगा के देखा, भारत माता दिव्य आभा के साथ संपूर्ण विश्व को मार्गदर्शन देने के लिए पुनः सिंहासना रूढ़ होने जा रही है। और वो समय सिर्फ एक शताब्दी दूर है।" तो एक शताब्दी 2002 में पूरी हुई और जाके चेक कर लीजिए। 2003-4 में इंडिया की सक्सेस स्टोरी होनी शुरू हुई। एंड द थर्ड क्वार्टर ऑफ़ 2003 एंड फोर, वी टच 10% ग्रोथ रेट। ठीक है? एक ही क्वार्टर के लिए तय की। 2004 में हमारा फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व 100 बिलियन पहुंचा।
श्री अरविंदो ने कहा था कि भारत एक महान संक्रमण काल से गुजर रहा है जो 175 साल का है और इसमें यह शुरू से जब ये 175 साल पूरे होंगे, इसके बाद इंडिया अपनी पीक की यात्रा प्रारंभ करेगा और इस 175 साल के संक्रमण काल का उन्होंने प्रारंभ माना स्वामी रामकृष्ण परमहंस के जन्म से। स्वामी रामकृष्ण परमहंस वाज़ बोर्न इन 1836 एंड 175, 2011 में होते हैं। अब 2012 के बाद भारत में कुछ तो बदलाव दिखा था ना। इसका मतलब अब वो भारत की वह यात्रा शुरू हो गई है और वो शुरू होकर विश्व को क्या संकेत देगी। ऐसे समझिए, अभी इस बार कुंभ हुआ। 6.6 करोड़ लोग आए। दुनिया में 72% लोग ऐसे थे क्योंकि ये सोशल मीडिया के दौर का पहला कुंभ था, जिनको यह पता ही नहीं था कि भारत में कोई इतना बड़ा आयोजन होता है। 50 लाख लोग बाहर से आए 6.6 करोड़ में जो गैर हिंदू थे। किसी ने नहीं कहा उनको रोका नहीं और सोचिए, उनकी इच्छा थी कि भारत में आए। कोई गैर क्रिश्चियन कहता मुझे वेटिकन जाना है धार्मिक यात्रा से, टूरिस्ट के लिए नहीं। कोई गैर मुस्लिम कहता है कि मुझे हज जाना है और अगर कह दे तो सबसे पहली शर्त होती है कन्वर्ट हो जाओ। यहां 50 लाख आए, सबने आकर श्रद्धा से आकर यह किया और कोई कन्वर्ट होने के लिए नहीं कहा गया।
आज राहुल गांधी जी इतना डायलॉग देते हैं। मैं विनम्रता से पूछना चाहता हूं कि सोनिया गांधी जी 2001 में आई थी कुंभ मेले में स्नान करके गई संगम नोज पे। उत्तर प्रदेश और केंद्र दोनों में हमारी सरकार थी। अटल जी भारत के प्रधानमंत्री थे। राजनाथ सिंह जी उस समय यूपी के सीएम थे। किसी ने नहीं कहा कन्वर्ट हो जाओ। वो आज बगैर कन्वर्ट हुए हज यात्रा करके दिखा दें।
इसलिए मैं कह रहा हूं, वो आबे जमजम में जाके उसका पानी लेके दिखा दे बगैर कन्वर्ट हुए। इसलिए मैं कहना चाहता हूं, देश के सामने यह जो चेंजेस हैं, मगर अब देश ट्रांसफॉर्म होने के लिए आगे बढ़ रहा है। बड़े-बड़े लोगों ने यह संकेत भी दिया है और आप यूं समझ लीजिए, हम उन्हें मैसेज क्या देंगे? वो 50 लाख लोग आए, क्या देखने आए यहां? मैं एक बात रिपीट करके अपनी बात समाप्त करूंगा। यद्यपि ये बात मैं पहले बोल चुका हूं। उन्होंने कहा, "दुनिया में सुख किस में है?" कहा, "पैसा मिल जाए तो सब सुख है। बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपया।" यह मार्क्स की थ्योरी थी। दूसरे ने कहा, "शारीरिक सुख मिल जाए तो सब कुछ बढ़िया है।" सिगमंड फ़्रॉयड की थ्योरी। तीसरे ने कहा, "नेम एंड फेम मिल जाए, बस दुनिया में सब कुछ बढ़िया है।"
मगर जब वो आते थे, नागा साधुओं को देखते थे, तो वो चौंक जाते थे। "अरे भाई, इनको क्या चाहिए? ना पैसा चाहिए, ना फिजिकल प्लेज़र चाहिए, ना नेम एंड फेम चाहिए।" आप किसी नागा साधु के पास जाएं, आपका कोई काम हो गया हो तो आपने तमाम किस्से सुने होंगे, वो डांट के भगा देते थे। कभी-कभी गाली बक देते थे। तो आपको लगता था, "भाई, इसमें क्या है? मैं तो साधुवाद देने गया था और आप जो है वो मुझे डांट दिए।" इसलिए कि वो नेम एंड फेम से भी दूर रहना चाहते थे। तो जब वो आते हैं, तो भारत को देखकर उनके कॉन्सेप्ट में और हमारे कॉन्सेप्ट में क्या फंडामेंटल डिफ़रेंस आ जाता है जिसे एक पंक्ति में मैं कहना चाहूंगा कि वेस्ट की थॉट और हमारी थॉट में अंतर जो कुंभ के नागा साधुओं में दिखता है, कि "वो सुख खोजे भौतिकता में, वो सुख खोजे भौतिकता में मदिरा में मांस की बोटी में।" "यह भस्म रमाए अपने तन पर खुश हैं सिर्फ लंगोटी में।" और यहां मार्क्स भी फेल, मैक्स वेबर भी फेल, सिगमंड फ्रायड भी फेल।
तो इसलिए मैं लास्ट में कहता हूं, बिल्कुल आश्वस्त रहिए, इंडिया का समय आ गया है जो प्रधानमंत्री जी ने कहा, "यही समय है, सही समय है, भारत का अनमोल समय है।" तो इसे एक पंक्ति में कहेंगे, "भारत मां अंगड़ाई लेती, सुप्त चेतना जाग रही। ऋषि-मुनियों की देवधरा फिर अपना रूप संवार रही।" और लास्ट में यह भी समझ लीजिए, "गौरवशाली अतीत हमें प्रेरणा दे रहा है, स्वर्णिम भविष्य हमारी प्रतीक्षा कर रहा है, बस वर्तमान में कोई गलती नहीं करनी है।" इसलिए, "गौरवशाली था भूत, भूतकाल, पास्ट, गौरवशाली था भूत, भविष्यत भी महान है, अगर संभाले आप उसे जो वर्तमान है।"
 
 
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